बालरक्षार्थं द्वादश विधानानि

षो-सं@ सूर्य स्कन्द संवादे बालरक्षार्थं द्वादश विधानानि खंड १~ या स्त्री निशामुखेऽश्नाति बालं स्पृशति भुञ्जति|| प्रसूतिसमयेऽभ्यङ्गं न करोति प्रमादतः|| नग्नानिद्राति रात्रौ वा निष्पन्नसुरतासती|| तस्याबालं दिनैर्मासैर्वर्षैरपि विशेषतः|| विधानमालायाम्||
जोगर्भिणीसूर्यास्तवेला खातीं हों, या बालकको स्पर्श करतें हुए खातीं हों, बिनावस्त्र रात्रिमें या दिनमें सोतीं हो तथा प्रसूति समय शरीरपर अभ्यङ्ग न किया हो.उनके बालकोंको जन्मके पहलेदिन पहलेमास या पहलेवर्षमें विमोचिनी पिड़ा रह सकतीं हैं.
गृह्णातु मत्प्रसादेन ज्वराद्यै र्वेदनाञ्चयैः|| ज्वरस्तु प्रथमं तावन्नेत्ररोग स्ततः परम्|| न गृह्णाति स्तनं डिम्भो वान्तिरान्तिकी भवेत्|| मुष्टिं बध्नाति वेगेन दन्तादन्तैर्दशत्यलम्||
महेश्वर कहतें हैं- मेरी आज्ञासे उसके बालकको ज्वर(बुखार),शरीर तुटना,आँखसूखना,लाल आँखे होना,स्तनपान न करना, रोंते रहना,वेगसे मुठ्ठी बाँधना,दाँतोसेदाँत पीसना?(दहाड़से दहाड़) पीसना,आदि उपद्रव होतें हैं..
जिसकी शांतिके लिये- पिता ब्राह्मणसे विधान करवायें. तीनराततक गामके उत्तरमें ६से १२ बजेके पहले; मिट्टीके बडे नूतन(सावलें)पात्रमें साठीचावल(लाल तंडुल) से बनायें हुए घृतमिश्र भात, गुड़, आँटेसे बने ५ दीपक, ५ गुजीयें,५ पीले वस्त्रकी छोटी धजायें, ५ ताम्बुलके बीड़े. {धूपसामग्री:- शिवनिर्माल्य(शिवपूजाके बाद शिवलिङ्गपरसे उतारें हुए पुष्पादि),बिल्वपत्र, घृतमिश्रित,} नदीसंगमकी मिट्टी२५०ग्राम, पीलावस्त्र,पीलीजनेऊ.लकड़ीकें कोयलें,लालचन्दन(रतांजली),कनेरके लाल पुष्प, यह सब सामग्री लेकर गाँवके उत्तरीदिशामे जाकर संगमकी मिट्टीसे पुतली बनाकर उस पुतलीको पीले वस्त्रसे वेष्टित करैं." पीतसूत्रोपवीतां तां पूजयेद्भक्तिमान्ननरः||"
पीली जनेऊ पहनायें. और पीले वस्त्रपर उस पुतलीको स्थापित करैं... संकल्पः- यजमानस्य( यजमानायाः) नवजातस्य(नवजातायाः) उत्पन्न विमोचिनी पीड़ा शांति अर्थं विमोचिनी विधानं करिष्ये.... गणपति स्मरण करकें... सावलें(मिट्टीके पात्रमें भात आदि नैवेद्य रखकर पाँच दीपक रखें.पाँच गुजीयें, पाँच ताम्बुलबीड़े.तथा पाँच पीली धजायें रखे.) ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनी स्वाहा" इसमन्त्रसे अक्षत पुतलीपर चढाकर... विमोचिनी पूतनाका" विमोचिन्यैनमः आवाहयामि, ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनीस्वाहा" आसनं समर्पयामि नमः" पाद्यं समर्पयामि नमः" अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा" आचमनीयं समर्पयामि वं नमः" वस्त्रं समर्पयामि नमः" हरिद्रारञ्जित उपवीतं समर्पयामि नमः"(लालचन्दन) गंधं समर्पयामि नमः" (कनेरपुष्प) पुष्पं समर्पयामि वौषट्" (शिवनिर्माल्य,बिल्वपत्र,घृतादिसे) कोयले जलाकर धूप- धूपं समर्पयामि नमः" सावलें(दीपकोंको प्रग़टाकर- मिट्टीका पात्र नैवेद्य समेत) लेकर विमोचिनीके आपादमस्तकं दीपबतायें) दीपकान् समर्पयामि नमः" विमोचिनीके सामने सावला रखकर जलसे सावलेकी बहार गोल प्रदक्षिणावत् धारा करैं. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा" " एवं मन्त्र समुच्चार्य सर्वापूजां प्रकल्पयेत्|| सभी उपचार " ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनी स्वाहा" मन्त्रसे करैं. तदुपरांत पूजाके अंतमें इसी मंत्रका २८ वख्त जप करैं....
अनेन बालरक्षार्थं विमोचिनी पूजनेन विमोचिनी पूतना प्रीयतां न मम...
हाथ पैर धोंक़र गृहप्रवेश करैं.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो- सं@ बाल रक्षायां १२ विधानानि खंड २~ मोहिनी पीड़ा शमनम्*
द्वितीये दिवसे मासे वर्षे चैव प्रभाकर|| मोहिनीनाम देव्यत्र कुरुते पीड़नं शिशोः|| जन्मसे दूसरे दिन, दूसरे मास,या दूसरे वर्षमें गर्भिणीके कहे हुए दौषोसे नवजातबच्चेको मोहिनी पीड़ा हो सकती हैं...
लक्षणम्- ज्वरं नेत्ररुजं कासं श्वासं चैव विशेषतः|| छर्दनं ग्रहणीं द्वेषं जनयन्त्यनिशं शिशोः|| विधानमाला||
बच्चेको- बुखार,नेत्रव्याधि,खाँसी,श्वासघुंटना या मुँहसे श्वासलेना, वमन, ग्रहणी(वातदोष कुपित होनेपर पाचनशक्ति का मंदहोना और अतिसार जैसा होना)
पिता ब्राह्मणके पास विधान करायें... " जम्ब्वाम्रोदुम्बराश्वत्थवटानां पल्लवाः|| सर्वांगेभ्यः समुत्तार्य पीडा बालस्य सं व्रजेत् || जामुन्,आमके पत्ते , गुलरके पत्ते,पीपलकेपत्ते, वड़के पत्ते, को मिलाकर बालकके सिरसे पैरतक स्पर्श करवाँके उतारे हुए वह पत्ते विधान समय साथ ले जानेंके लिये व्यवस्थित रखैं.
मालतीपुष्प,चन्दन सफेद, कुमकुम, केसर, कर्पूर, दशांगधूप, नैवेद्य " पहले विमोचिनी पूतनाका कहा था" ऐसा धजा दीप गुजीये आदि.नदीसंगमकी मिट्टी.. उतारे हुए पत्ते.... सावला(मिट्टीका पात्र)
रातको ६- से १२ बजे पहले गाँवकी पश्चिम दिशामें जाकर मिट्टीसे पूर्ववत् पुतली बनाकर वस्त्रादिसे भूषित करके...
संकल्पः यजमानस्य(यजमानाया:) नवजातकस्य शरीरे उत्पन्न मोहिनी पूतना पीडा़ शांत्यर्थं शांति विधानं करिष्ये.... गणपतिका स्मरण करकें... सावलें(मिट्टीके पात्रमें भात आदि नैवेद्य रखकर पाँच दीपक रखें.पाँच गुजीयें, पाँच ताम्बुलबीड़े.तथा पाँच पीली धजायें रखे.) ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनी स्वाहा" इसमन्त्रसे अक्षत पुतलीपर चढाकर... विमोचिनी पूतनाका" विमोचिन्यैनमः आवाहयामि, ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनीस्वाहा" आसनं समर्पयामि नमः" पाद्यं समर्पयामि नमः" अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा" आचमनीयं समर्पयामि वं नमः" वस्त्रं समर्पयामि नमः" हरिद्रारञ्जित उपवीतं समर्पयामि नमः"(लालचन्दन) गंधं समर्पयामि नमः" (कनेरपुष्प) पुष्पं समर्पयामि वौषट्" (शिवनिर्माल्य,बिल्वपत्र,घृतादिसे) कोयले जलाकर धूप- धूपं समर्पयामि नमः" सावलें(दीपकोंको प्रग़टाकर- मिट्टीका पात्र नैवेद्य समेत) लेकर विमोचिनीके आपादमस्तकं दीपबतायें) दीपकान् समर्पयामि नमः" विमोचिनीके सामने सावला रखकर जलसे सावलेकी बहार गोल प्रदक्षिणावत् धारा करैं. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा" " एवं मन्त्र समुच्चार्य सर्वापूजां प्रकल्पयेत्|| सभी उपचार " ॐनमो भक्तवत्सले विमोचिनी स्वाहा" मन्त्रसे करैं. तदुपरांत पूजाके अंतमें इसी मंत्रका २८ वख्त जप करैं....
अनेन बालरक्षार्थं विमोचिनी पूजनेन विमोचिनी पूतना प्रीयतां न मम...
हाथ पैर धोंक़र गृहप्रवेश करैं.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो- सं@ बाल रक्षायां १२ विधानानि खंड २~ मोहिनी पीड़ा शमनम्*
द्वितीये दिवसे मासे वर्षे चैव प्रभाकर|| मोहिनीनाम देव्यत्र कुरुते पीड़नं शिशोः|| जन्मसे दूसरे दिन, दूसरे मास,या दूसरे वर्षमें गर्भिणीके कहे हुए दौषोसे नवजातबच्चेको मोहिनी पीड़ा हो सकती हैं...
लक्षणम्- ज्वरं नेत्ररुजं कासं श्वासं चैव विशेषतः|| छर्दनं ग्रहणीं द्वेषं जनयन्त्यनिशं शिशोः|| विधानमाला||
बच्चेको- बुखार,नेत्रव्याधि,खाँसी,श्वासघुंटना या मुँहसे श्वासलेना, वमन, ग्रहणी(वातदोष कुपित होनेपर पाचनशक्ति का मंदहोना और अतिसार जैसा होना)
पिता ब्राह्मणके पास विधान करायें... " जम्ब्वाम्रोदुम्बराश्वत्थवटानां पल्लवाः|| सर्वांगेभ्यः समुत्तार्य पीडा बालस्य सं व्रजेत् || जामुन्,आमके पत्ते , गुलरके पत्ते,पीपलकेपत्ते, वड़के पत्ते, को मिलाकर बालकके सिरसे पैरतक स्पर्श करवाँके उतारे हुए वह पत्ते विधान समय साथ ले जानेंके लिये व्यवस्थित रखैं.
मालतीपुष्प,चन्दन सफेद, कुमकुम, केसर, कर्पूर, दशांगधूप, नैवेद्य " पहले विमोचिनी पूतनाका कहा था" ऐसा धजा दीप गुजीये आदि.नदीसंगमकी मिट्टी.. उतारे हुए पत्ते.... सावला(मिट्टीका पात्र)
रातको ६- से १२ बजे पहले गाँवकी पश्चिम दिशामें जाकर मिट्टीसे पूर्ववत् पुतली बनाकर वस्त्रादिसे भूषित करके...
संकल्पः यजमानस्य(यजमानाया:) नवजातकस्य शरीरे उत्पन्न मोहिनी पूतना पीडा़ शांत्यर्थं शांति विधानं करिष्ये.... गणपतिका स्मरण करकें..
पुतलीका- इसमंत्रसे पूर्ववत् कुमकुम केसर सफेदचन्दन कर्पूरमिलाकर लेपन, मालतीपुष्प, तथा दशांगधूपादिसे पूजन करैं..." सर्वेश्वरि सर्वजनप्रियङ्करि त्राहि त्राहि जगत्सर्वम् ॐनमो भगवति स्वाहा.....
पूजन समाप्तिपर - संक्ल्पः ~> अनेन पूजनेन मोहिनी पूतना प्रीयतां न मम"
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
/7, 15:49] ॐनमश्चंडिकायै": षो-सं@बालरक्षायां १२ विधानानि खंड३~ तृतीये दिवसे मासे वर्षे श्रृणन विधिं रवे|| सनन्दानाम देव्यत्र बालानां भयदा भवेत्|| विधान माला|| कहे हुऐ पूर्वकथन अनुसार गर्भिणीके दोषोंसे नवजातबालकको तीसरेदिन,तीसरेमास या तीसरेवर्षमें सनन्दापीड़ा होनेकी सम्भवना रहतीं हैं.| लक्षण- हृदयकी कमजोरी, श्वासघुंटना या मुँहसे श्वास लेना, बुखार, शरीरके अङ्ग संकोचाना,आकुञ्चन, कम्पन रातदिन होना,
विधानम्- तस्याः शान्तिविधानं तु प्रवक्ष्यामि समासतः||
पूर्व कहे अनुसार पाँचप्रकारके पत्ते लेकर बालकके शरीरपरसे उतारकर व्यवस्थित रखें. लेपनके लिये गंध-( चन्दन,हरिद्रा,कुमकुम, नागकेसर,और कर्पूर) गुलाबकेपुष्प, खैरकीलकड़ीयाँ धूपकेलिये, गुग्गुल, नदीसंगमकी मिट्टी, सावला(मिट्टीका पात्र),५ धजा,५ गुजीये,५ दीपक, बासमतिचावलके भात घृतमिश्रित, गाँवसे पूर्वदिशामें, तीनराततक,श्याम ६- से रात१२ तक, सकलपूजामंत्र- ॐनमः सुनन्दायै हुं फट् स्वाहा".....
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पूतनापीडा* चतुर्थे दिवसेमासे वर्षे चैव दिवाकर|| पूतनानाम देव्यत्र पीडां प्रकुरुते शिशोः|| विधानमाला||
नवजातबालकको पूर्वकथन अनुसार दोषोंसे चौथेदिन,चौथेमास या चौथेवर्षमें पूतनापीडा का विधान हैं.
लक्षण- संताप,अतिसार,मुठ्ठीबाँधना, कम्पन,बारबार होना.
विधान- त्रयोदशी या चतुर्दशीकेदिन पूर्व कहे अनुसार पाँचपत्ते लेकर बालकके शरीरसे उतारकर व्यवस्थित रखे.सावला,संगमनदीकी मिट्टी. त्रिकोणाकार आँटेके तीन दीपक,गुजीये ३… धजा तीन, दहींअक्षत, रक्तसूत्रपुतलीको लपेटनेके लिये, कुमकुम, धतूरपुष्प,बदरी(बेर)पत्रपूजामें, घृतमिश्रित गुग्गुल धूप,तीनराततक गाँवसे दक्षिण दिशामें सायंकाल६ से रात्रि१२ तक,
सकलपूजा मंत्र- ॐनमःपूतने मातर्बलि पश्यसुशोभने|| बालकं मुञ्चवेगेन बलिदानेन हर्षिते||
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
ॐनमश्चंडिकायै": षो-सं@बाललक्षायां१२विधानानि खंड ४~ आसुरीपीड़ा* पञ्चमे दिवसे मासे वर्षे चैव विभाकर|| आसुरीनाम देव्यत्र बालकं बाधते भृषम्||
पूर्व कहैं हुए गर्भिणीके दोषोंसे नवजात शिशुको जन्मसे ५ दिन- मास या वर्षमें आसुरीपीडा़ शमन हेतु शांति विधान दर्शाया हैं.
लक्षण- बुखार,हृदयमें पीड़ा,अतिसार, आवेगपूर्वक मुठ्ठीबंध करना, प्रलाप,उद्वेग, कुछभीखाने पीनेका मन न होना, अत्यन्त सिरदुःखना आदि व्याधियाँ की संभवना हैं.
विधानम्- पूर्ववत् पुतलींकृत्वा पीतसूत्रेण वेष्टयेत्|| पीतवासो वसानां तां शरावे संनिवेशयेत्|| पल्लवैःपञ्च उत्तार्य बालस्य पीडा शांतये||
पाँचपत्ते(जामुन,गुलर,बरगद,पीपल,आम) से बालकके मस्तकसे पैरतक सारे शरीरपर स्पर्शकरकें व्यस्थित रखैं.
सामग्री- हल्दीसे रंगाहुआ सूतीका धागा, पीला वस्त्र,नदीसंगमकी मिट्टी,सावला(मिट्टीका पात्र) गायका घी,हल्दी पाउडर, कनेरका पुष्प, गुड़हलका पुष्प, सफेद चन्दन, धूप( राई,सरसव,घी),७ दीप,७ धजा,७ गुजीये, ७ कनेरपुष्पकी छोटीं मालायें, नैवेद्य घी भात,
गाँवकी पश्चिम दिशामें तीनरात विधान करैं.
नवजात शिशोः शरीरे संजात आसुरीपीडोपशमनार्थं रात्रित्रसाध्य आसुरी विधानं करिष्ये.
सावलेमें घी-भात,७ दीपक,७ पीली धजा,७ गुजीये रखकर नदीसंगमकी मिट्टीसे पुतली बनाकर पीलावस्त्र लपैटें साथमें हल्दीसे रंगा हुआ सूतीके धागेसे सात आँटी लगाकर पुतलीके छातीसे कटीस्थलपर्यन्त अनुबंध करैं. पुतलीको सावलेके बराबर बीचमें रखकर चन्दन, कनेर,गुडहल पुष्पसे प्रत्येक उपचारमें तीन तीन बार मंत्र बोलकर पूजा करैं.मंत्र- सुकुले सुभगे देवी सर्वशत्रुनिवारिणि|| कुरु शान्तिं शिशोश्चात्र बलिदानेन राक्षसि|| ३/३ वारम्|| राई और सरसवमें घी मिलाकर धूप दैं. ७ दीप प्रगटायें, बालकके शरीरपर से उतारे हुए पत्तोको सावलेके पास रखकर-
उपरोक्तमंत्रका सातबार जप करैं
अनेन बलिदानविधानेन आसुरीपूतना प्रीयताम् न मम
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
[7/11, 15:31] ॐनमश्चंडिकायै": षो-सं@ बालरक्षायां १२ विधानानि खंड ५~ रेवतीपीड़ा* अथ षष्ठे च दिवसे मासे वर्षे दिवाकर|| रेवतीनाम देव्यत्र शिशुं गृह्णात्यसंशयम्||
पहले कहे हुए गर्भिणीके दोषानुसार नवजात शिशुको रेवती पीड़ा का विधान कहा हैं.
लक्षणम्- सिरमें चखमें, बुखार, मुँह सुक्खना, ज्यादा प्यास लगना, शरीरमें कम्पन होना, वारं वार रोना,
विधानम्- जामुनके पत्ते, गुलरके पत्ते, बरगदके पत्ते, आमके पत्ते, पीपलके पत्ते, मिलाकर शिशुके मस्तकसे पैर तक स्पर्श करके उतारकें व्यवस्थित रखैं.
सामग्री- सावला(मिट्टीका पात्र) नदी संगम मिट्टी, ५ दीपक, ५ सफेद धजा, ५ गुजीये,नैवेद्यबलि- खीलको कूटकर निकले चावलके घीसे मिश्रित भात(मशीनसे निकाले हुए दानोंके नहीं)गुड़, दहीं, गंगाजल, सफेदवस्त्र,सफेदसूतका धागा, सफेद चन्दन, कोईभी सफेद पुष्प, धूपके लिये( बिल्वपत्रसुखे- घी), सफेद फुलोंकी छोटीं माला, पानबीड़ा
काल- गाँवसे उत्तर दिशामें त्रयोदशी तिथि- तीन दिन रात १० बजेसे पहले.
संकल्प- नवजातशिशोः शरीरे जनित रेवतीपीडोपशमनार्थं रेवती विधानं करिष्ये..
नदीसंगमकी मिट्टिसे पुतली बनाकर गंगाजलसे स्नान(प्रोक्षण) कराये. सफेद वस्त्र पहनाकर सफेदसूतका धागा लपैटे. सावलेमें घीसे युक्त भात,गुड़, दहीं रखकर मध्यमें पुतली रखें.सावलेकी चारों बाजु ध्वजारोपण करैं, पूजनमंत्र- राक्षसि त्वं महाभागे बालं मुञ्च शुभानने|| क्षेमं कुरु जगत्यस्मिञ्छोभना भव रेवति|| इस मंत्रसे सफेद चन्दन, सफेद पुष्प और पुष्पकी माला, बिल्वपत्रका धूप, दीपक प्रगाट़ाकर मंत्र पढैं, भात नैवेद्यबलि पर जल सिंचके मंत्र पढैं. पानबीडा देकर १० बार मंत्रजप करैं.
अनेन बालरक्षार्थं बलिविधानेन रेवतीपूतना प्रीयताम् न मम.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
ॐनमश्चंडिकायै": षो-सं@ बालरक्षायां १२ विधानानि खंड ६~शकुनीपीड़ा* सप्तमे दिवसे मासे वर्षे दिवाकर||शकुनीनाम देव्यत्र बालं गृह्णाति दारुणा|| स्कन्दपुराणे|| पूर्व कथित गर्भिणीके दोषोंसे नवजात शिशुको सातवेँ दिन- मास- वर्षमें शकुनीपीड़ा की संभवना हैं.
लक्षणम्- बुखार, शिरोरोग, प्रलाप, अतिसार, आँखे न खोलना, शरीर काँपना, इत्यादि.
विधानम्- पहले कहे हुए अनुसार शिशुके शरीरपरसे पाँचप्रकारके पत्तों उतारकर रखे.
संकल्प- अमुकस्य(अमुकायाः) नवजातस्य(नवजातायाः) शरीरे शकुनीपीडोऽपशमनार्थं शकुनी विधानं करिष्ये...
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रक्तचन्दन लिप्ताङ्गी पूर्ववत्पुत्तली कृताम्||
गाँवसे दक्षिणदिशामें रात १० बजेसे पहले जाकर नदीसंगमकी मिट्टी से पुत्तली बनाकर उसे रतांजलीके चन्दनसे सारे शरीरपर लेप करैं.लालवस्त्र पहनायें.गायके घीसे मिश्रीत भात नये सावलेमें शकुनीमंत्रसे(ॐनमः पद्मपत्राक्षि विशाल वदने शिवे|| संगृह्य बलिमेनं त्वं बालं मुञ्च सुशोभने||) रखकर उसके मध्यमें पुत्तली रखे.सावलेमें चारों बाजु ५ दीपक, ५ गुजीये,५ लालध्वजा रखें.रतांजलीचन्दनसे शकुनीमंत्रद्वारा लेपन प्रदान करकें उस ही मंत्रसे ऋतुमें प्राप्तपुष्प चढायें- गुग्गुलका धूप- दीप प्रगटायें. जलसे बलिभातको सिञ्चित करके शकुनी मंत्र का पाँचबार जप करैं.बालकके शरीरपरसे उतारे हुएँ पत्ते सावलेके सामने रख दैं.. तीन रात विधान करायैं.
अनेन बालरक्षार्थं बलिदानेन शकुनीपूतना प्रीयतां न मम.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो-सं@बालरक्षायां १२ विधानानि खंड७~ पिशाचिका पीडा* अथाऽष्टमे दिने मासे वर्षे देवी पिशाचिका||पीडयत्येव बालानि ज्वरच्छर्दि शिरोर्तिभिः|| नेत्रपीडां सङ्कोचो हृद्रोगश्चाभिजायते||ब्रह्मयामले|| पहले वर्णन कहा अनुसार गर्भिणीके दोषोंसे नवजात शिशुकों पिशाचिका पीड़ा का विधान कहा हैं.
लक्षण- नेत्रपीड़ा, शरीरके गात्रोका संकोचाना, हृदयमें पीड़ा, बुखार, शर्दी,झुकाम.
विधानम्- बालकके शरीरपरसे पूर्वकथित पत्तोको उतारकर बालकको पञ्चामृतसे स्नान कराये. गाँवकी पूर्व दिशामें जाकर बलिदान विधान करैं.
संकल्पः- यजमानस्य(यजमानायाः) नवजातशिशोः शरीरे जनित पिशाचिकापीडोपशमनार्थं बलिविधानं करिष्ये..
नदीसंगमकी मिट्टीसे पुत्तलीबनाकर पञ्चामृतसे ( पयो दधी घृतं चैव०) मंत्रसे स्नान वा प्रोक्षण करायैं.पीलावस्त्र पहनायें पीलाधागा लपैंटे. सावलेमें घीभात, पानबीड़ा, कर्पूर, ७ दीपक,७ पीली ध्वजा,७ गुजीये, और बालकके शरीरपरसे उतारे हुए पत्ते रख दैं. सावलेके मध्यमें पुत्तली रखकर( ॐनमःसर्वभूतेशि शोभने त्वं पिशाचिके|| बलिं चैव पुरस्कृत्य त्वरितं मुञ्चबालकम्||) मंत्रसे श्वेतचंदन, सफेदपुष्प, भांगमें घी मिलाकर धूप, दीपप्रगटाकर- नैवेद्यमें जल सेचन करैं. नमस्कार करतेंहुए ७ बार मंत्रजप करैं.
अनेन बलिदान विधानेन पिशाचिका प्रीयतां न मम.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो-सं@बालरक्षायां१२विधानानि खंड ८~ पाशिनीपीड़ा* नवमे दिवसे मासे वर्षे चैव प्रभाकर|| देवता पाशिनी संबाधते बालकं भृषम्||
पूर्व कथित गर्भिणीके दोष अनुसार नवजात शिशुको ९ दिन- मास या वर्षमें पाशिनी पीड़ा विधान कहा हैं.
लक्षण- बुखार,शर्दी-झुकाम, गलेमें पीड़ा, नेत्रसंकोचाना, अँगुठाऔर मध्यमा अँगुली दीखाना या अँगुठा और तर्जनी अँगुली दर्शाना,भूख न लगना, मुखमें वास आना.
विधानम्- पूर्व कथन अनुसार पाँच पत्ते शिशुके शरीरपरसे उतारैं.
तीन रात यह विधान करना हैं. गाँवकी पश्चिम दिशामें .
संकल्प:~ यजमानस्य(यजमानायाः) नवजातशिशोः शरीरे जनित पाशिनी पीड़ा परिहारार्थं बलि विधानं करिष्ये.
नदीसंगमकी मिट्टीसे पुतली बनाकर उसका नदीके जलसे स्नान अथवा प्रोक्षण करैं.सफेद वस्त्र पहनायैं.सफेद सूत लपैटें.सावलेमें भात घी दूध दहीं मिश्र करकें रखकर मध्यमें पुत्तली रखें.(नव वा सप्त वा दीपान्पोलिका वा नवोत्तमा= उत्तम शब्दस्यार्थः- अङ्गारापक्वा अदग्धाः) आटेंके दीप गुजीयें बनाकर अँगारेपर अर्धपक्व शेककर नव अथवा सात गुजीये और नव अथवा सात दीपक रखें.सफेद सात अथवा नव ध्वजा रखें.(ॐनमः सर्वभूतेशि पाशिनि त्वं सुशोभने|| बलिं चैव पुरस्कृत्य त्वरितं मुञ्च बालकम्||) मंत्रसे सफेद चन्दन- चम्पापुष्प तथा आँक़के पुष्प- दशांगधूप- दीपक प्रगटायैं- नैवेद्यपर मंत्रपढकर जल सिंचे.... शिशुपरसे उतारे हुए पत्तो सावलेके पास रखकर- नमस्कार करैं.
संकल्प- अनेन बलिदानेन पाशिन्यर्पणमस्तु.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो-सं@ बालरक्षायां १२ विधानानि खंड ९~ महामारी पीड़ा* दशमे दिवसे मासे वर्षे चैव दिवाकर|| शक्तिरत्र महामारी राक्षसी घोररूपिणी|| पहले कहैं अनुसार गर्भिणीके दोषोसे शिशुको १० वें दिन- मास या वर्षमें महामारी पीडा़ हो सकतीं हैं.
लक्षणम्- मृत्युतुल्यपीड़ा, बुखार,सारे दिन रात उदरपीड़ा-शूळ, हिचक़ी, हृदयमें पीड़ा, शरीर सुखना.
विधान- पहले कहैं हुए अनुसार शिशुके शरीरपरसे पाँच पत्ते उतारैं. रात्रिमें १२/३० के बाद गाँवसे दक्षिण दिशामें जाकर-
संकल्प- यजमानस्य(यजमानायाः) नवजातशिशोः शरीरे जनित पीड़ोपशमनार्थं महमारी बलिविधानं करिष्ये.
नदीसंगमकी मिट्टीसे पुत्तली बनायैं- नदीके जलसे प्रोक्षण वा स्नान करायें- पीला वस्त्र पहनायैं- साँवलेमें घीभात पानबीड़ा रखकर मध्यमें पुत्तली रखें. पाँच पीली धजा,दूध और आँटेसे बनैं ५ दीपक- ५ गुजीये, रखकर, (ॐ नमो रक्तवर्णाक्षि रक्तपद्म निभानने|| रक्तोष्ठे रक्तदशने महामारि महाभये|| महाबले महाकाये महाभय निवारिके(निवारिणी)|| अनेन बलिदानेन तुष्टा भव सुशोभने|| व्याधिता पिड़ीतं बालं रक्षेमं परमेश्वरि|| ब्रह्मयामले|| )मंत्रसे केसरचन्दन,पीले पुष्प और माला- दशांगधूप- दीप प्रगटायें, नैवेद्यपर मंत्रसे जल सिंचन करैं. शिशुके शरीरपरसे उतारे हुए पत्तें साँवलेके पास रखकर- नमस्कार करैं.बलिदानेन महामारी प्रीयतां न मम
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ. शेष पुनः
षो-सं@बालरक्षायां १२ विधानानि खंड१०~ एकादशे दिने मासे वर्षे वापि दिवाकर|| कालिकानाम देव्यत्र तत्पीड़ा जायते शिशोः||
पूर्व कथन अनुसार गर्भिणीके दोषोंसे नवजात शिशुको ११वें दिन-मास या वर्षमें कालिकापीड़ा का विधान कहा हैं.
लक्षणम्- बुखार, हृदयशूळ,मुखसुकना, जी मचलना, चित्तभ्रम, बार बार शरीरमें वेदना, मृत्यु तुल्य कष्ट.
विधानम्- शिशुके सारे शरीरपरसे पाँच पत्तों उतारकर व्यवस्थित रखैं.समय->प्रदोषके दिन रात्रिकाल १० बजेसे पहले. दक्षिण दिशा.
संकल्पः- यजमानस्य(यजमानायाः)नवजातकस्य(नवजातकायाः) शरीरे समनत्पन्न कालिकापीड़ा परिहारार्थं बलिविधानं करिष्ये.
सावलेमें दूधमें पकाया हुआ मीठा भात(पायस), दूध, ६ तिलके लड्डु, ५उडिदके पूवें, ५ गुजीये, रखकर" नदीसंगमकी मिट्टीसे निर्मित पुत्तली को गंगाजलसे स्नान वा प्रोक्षण करवाँकर सावलेके मध्यमें रखे.५ पीली धजायें रखें. पुत्तलीको नीला वस्त्र पहनाये." ॐनमो घोररूपायै विकटे घोरदर्शने|| त्राहि सर्वजगद्धात्रि बालं मुञ्च बलिप्रिये||" इस मंत्रसे चन्दनकालेप- कनेरपुष्प-बैरकेपत्तों- से पूजनकर (धूप- संतानके बाल- साँपकी काँचळी- सरसव- वज- लहसुन- समद्रफेन- गुग्गुल- घृतमिश्र) धूप देवें- पाँच दीपक प्रगाटाकर नैवेद्यपर उक्त मंत्रसे जल सिंचन करैं.शिशुपरसे उतारें हुए पत्तों सामने रखकर नमस्कार करकें ७ बार उपरोक्त मंत्रका जप करैं. संकल्पः- अनेन बलिदानेन कालिका प्रीयतां न मम
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भामिनी पीड़ा*- द्वादशे दिवसे मासे वर्षे चैव दिवाकर||भामिनीनाम देव्यत्र पीडयत्यनिशं शिशुम्||
गर्भिणीके पूर्वकथित दोषानुसार नवजात शिशुको १२ वें दिन-मास या वर्षमें भामिनीपीडा़ का विधान कहा हैं.
लक्षणम्- बुखार, हदयशूल, श्वासघूंटना, छातिमें पीड़ा, अतीसार, प्रलाप, जुमुहाई(सुस्ती), शरीरतूटना, नेत्रजड़ता.
विधानम्- पाँच पत्तोंसे उतारा करना,(निशामुखम्=सायंकाल) में उत्तरदिशामें बलिविधान करैं.
संकल्पः- यजमानस्य(यजमानायाः) शिशो:(षड्मासाद्दूर्ध्वंगत" बालस्य वा बालायाः)-(अष्टवर्षाद्दूर्ध्वंगत-कुमारस्य वा कुमार्याः) भामिनी पीडाोपशमनार्थं बलिविधानं करिष्ये.
सावलेमें भात-पायस-पूवें-दूध-पूरी तथा ५ सफेदधजा और ५ गुजीये तथा दीपक रखकर नदीसंगममिट्टीसे निर्मित पुत्तली मध्यभागमें रखकर सफेदवस्त्र पहनायैं- सूतीसे लपैटे, " ॐबलिं गृहाण बालस्य(बालाया:) व्याधीन्संहर संहर|| पञ्चवक्त्र प्रसादेन प्रसन्नाभव भामिनी|| उक्त मंत्रसे चन्दनकालेप,अक्षत,ऋतुअनुसार पुष्पों, गुग्गुल धूप- दीप प्रगट़ाकर… बलिपर मंत्रसे जल सिंचन करैं शिशुके शरीरपरसे उतारे हुए पत्तोंको सामने रखकर नमस्कार करतें हुए पूर्वोक्त मंत्रका ७ बार जप करैं.
संकल्पः- अनेन बलिदानेन भामिनी प्रीयतां न मम
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ.

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