सौभाग्यशयन व्रत (पुत्रप्राप्ति)

पुत्रप्राप्ति निमित्तक चैत्र शुक्ल तृतीया को #सौभाग्यशयन नामक व्रत करना चाहिए..
प्रारम्भ चैत्र शुक्ल तृतीया से लेकर प्रतिमास की शुक्लपक्ष की तृतीया को एक वर्षतक करना चाहिए, प्रातःकाल तिलों से स्नान करे.
###### उपवास में ग्राह्य द्रव्य#####
दिनभर जलभी ग्रहण न करे...
चैत्र शुक्ल 3-  गाय के सींग में समाजाय इतना पानी रात में पीकर शयन करे. 
वैशाख शुक्ल 3-- गोबर तथा जल
ज्येष्ठ शुक्ल 3- आक के फूल को सूँघना, जल
आषाढ शुक्ल 3- बेलपत्र का सेवन जल के साथ
श्रावण शुक्ल 3- गाय के दूध से बना दहीं,  जल
भाद्रपद शुक्ल 3- कुश मिला जल
आश्विन शुक्ल 3- गाय का दूध
कार्तिक शुक्ल 3- गाय का घी
मार्गशीर्ष शुक्ल 3-- गौमूत्र
पौष शुक्ल 3- गाय का घी
माघ शुक्ल 3- कालेतिल , जल
फाल्गुन शुक्ल 3- गाय का मूत्र,  गोबर,  गाय का दूध,  गाय का घी, गाय का दहीं और कुशमिश्र जल (विशेष शूद्र को काली गाय के सब द्रव्य ग्रहण करना चाहिए परंतु सफेद गाय का बिलकुल नहीं)

विधा -गणपतिजी का स्मरण,  गौरीशंकर की चित्र प्रतिमा पर चन्दन, कुमकुम मिश्र अक्षत और मास के अनुसार जो मिले वह पुष्प चढाना चाहिये "(गौरीशंकराभ्यां नमः)"इस मन्त्र से पूजन करना चाहिए.. इसी मंत्र से धूपबत्ती, घृतदीपक,  और मिश्री का नैवेद्य लगाना चाहिए..

मास अनुसार अर्पण करने योग्य पुष्प - चैत्र -मोगरा,  वैशाख- अशोक , ज्येष्ठ-कमल,  आषाढ- कदम्ब,  श्रावण- सफेदकमल,  भाद्रपद- मालती,  आश्विन -कुब्जक, कार्तिक- कनेर,  मार्गशीर्ष - बाण(नीला कुरंटक),  पौष -अम्लान(महासहा),  माघ-केसर, फाल्गुन -सिंदधुरवार(निर्गुण्डी)- इसमे जो न मिले इसके बदले में गुडहल,  कोई भी सुगंधित पुष्प,  मालती,  और शतपत्रिका (कनेर का पुष्प प्रशस्त है) --जो प्राप्त हो वह चढावें..

सौभाग्यष्टक- मटर, लाल पुष्प,  दूध,  जीरा, तालपत्र,  ईख का टूकडा,  नमक और कुस्तुम्बुरु(धनियाँ)-ये आठ द्रव्य पूजनोपरांत भगवती को मास के अनुसार नामों से अर्पण करे...
सौभाग्याष्टक समर्पण संकल्प - चैत्र - ललिता प्रीयताम्,
वैशाख- विजया प्रीयताम्,  ज्येष्ठ- भद्रा प्रीयताम्,  आषाढ-भवानी प्रीयताम्,  श्रावण- कुमुदा प्रीयताम्,  भाद्रपद- शिवा प्रीयताम्,  आश्विन- वासुदेवी प्रीयताम्,  कार्तिक-गौरी प्रीयताम्,  मार्गशीर्ष -मंगला प्रीयताम्,  पौष- कमला प्रीयताम्,  माघ- सती प्रीयताम्,  फाल्गुन - उमा प्रीयताम्.....

वर्षान्ते फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी को - शैया,  सुवर्णसे बनी गौरीशंकर की मूर्ति जो पूजा की गई हो,  जोडे वस्त्र,  यथाशक्ति धान्य आदि पूजित ब्राह्मण को दान करे..
स्त्री, गर्भिणी, कुमारी भी चाहे तो व्रत कर सकती हैं..

व्रत के दिन कुछ पालनीय नियम (सूक्ष्मता पूर्वक शास्त्रालोडनमार्ग)- सूर्योदय से देढघंटे पूर्व जागरण, आयुर्वैदिक चूर्ण जिसमें बबूल न हो दंतशोधन,  तिलों से स्नान, सुशीलयुक्त वस्त्रधारण, केशबंधन,  तिलक, (सुवासिनी के लिए - सैंथे में सिंदूर व अन्य मंगल आभूषण) व्रतपूजा,  (इस व्रत का मन्त्रजप यथाशक्ति -[क्लीं रूप न्देहि जयन्देहि भगं भगवति देहि मे। पुत्रान्देहि धनन्देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे।।] , दिवा शयन वर्ज्य,  व्रतोचित काल में व्रतोचित उपवास में सेवनीय पदार्थ, व्रतमाहात्म्य श्रवण, मननादि, संभव हो तो गाय की पूजा सेवा,  अन्य का स्पर्श होनेपर तुरंत ठंडेजल से  स्नान, यथाशक्ति जागरण -व्रतोपास्य देवता का यथाशक्ति नामस्मरण, पारण के दिन व्रतोपास्यदेवता की ब्राह्मणद्वारा पूजन,  व्रतमें कहे दान दक्षिणा, कच्चा अन्नदान....

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