सूतके(जनन/मरण सूचकम्) सन्ध्योपासना विधि

वेदकी आज्ञा हैं कि नित्य प्रतिदिन संध्या करनी चाहिये तो वेदनारायणकी आज्ञाका पालन करना यह अपना मुख्य धर्म हैं,ईश्वरकी आज्ञाके पालनसे ही मनुष्योंका कल्याण होता हैं। भागवतमें पृथुराजा को भगवान् कहतें हैं-"मदादेशकरो लोकः सर्वत्राप्नोति शोभनम्।।४/२०/३३।। अर्थात् भगवान् कहतें हैं कि मेरे आदेशका पालन करनेवाला मनुष्य सर्वत्र शुभत्वको प्राप्त करता हैं।"सन्ध्या स्नानं त्यजन्विप्रः सप्ताहाच्छुद्रतां व्रजेत्। तस्मात्संन्ध्यां च स्नानं च सूतके$पि न संत्यजेत्।।याज्ञवल्क्य।। याज्ञवल्क्य का कहना हैं कि सातदिन संध्या और स्नान न करनेवाला द्विज शुद्रत्वको प्राप्त होता हैं,इसलिए सूतक(जनन,मरण),में स्नान संध्याका त्याग नहीं करना चाहिये।श्री पुलस्त्य और यमस्मृतिमें भी सूतकमें संध्या करनेका आग्रह बताया हैं।"सूतके मृतके कुर्यात् प्राणायाममन्त्रकम्।तथा मार्जनमंत्रास्तु मनसोच्चार्य मार्जयेत्।। गायत्रीं सम्यगुच्चार्य सूर्यायार्घ्यं निवेदयेत्। आचमनं न वा कार्यमुपस्थानं न चैव हि।।प्रयोग पारिजात।। जनन तथा मृत सूतकमें संध्याके विधानमें प्राणायाम मंत्ररहित,मार्जन के मंत्रो मनमें पढकर मार्जन,गायत्रीमंत्र स्पष्ट उच्चारण करतें हुए सूर्यनारायणको अर्घ्यदान,अंबुप्राशन करैं या न करैं, उपस्थान नहीं होता।
#सूतके_सन्ध्याविधिः--
बद्धशिखः तूष्णीं अमंत्रकं त्रिराचम्य || तदैव त्रिः प्राणानायम्य || विधिना भस्मं ललाटे ग्रीवायां वामदक्षिणस्कन्धयोश्च हृदये धारयित्वा | हस्तं प्रक्षाल्य || संकल्पः - देशकालौ संकीर्त्य मम नित्यकर्मानुष्ठान सिद्ध्यर्थं ममोपात्तदूरितक्षय द्वारा श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं संध्योपासनमहं करिष्ये | #आपोहिष्ठेति_तिसृभिः मनसोच्चार्य मार्जनम् || अम्बुप्राशनम् || गायत्र्या सूर्याय त्रिन्चतुर्वाऽर्घ्य दानम् | यथाशक्त्या गायत्रीं जपन् | अनेन गायत्री जप कर्मणा कृतेन श्री सूर्यनारायणः प्रीयताम् न मम || यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या ००|| अनेन संध्योपासनाख्येन कर्मणा कृतेन सविता श्री सूर्यनारायणः प्रीयताम् ||
#शास्त्रसारम्--->
#जनन_मरण_सूतक तो निमित्त मात्र आतें हैं ऐसे ही संध्योपानादि-नित्यकर्म से रहित #द्विज #नित्यसूतकी हैं -- कोई अंतर नहीं
#सन्ध्यालोपे_प्रायश्चित्त--
#सन्ध्याकाले_त्वतिक्रान्ते_स्नात्वा_चैव_यथाविधि | #जपेदष्टशतं_देवीं_ततः_सन्ध्यां_समाचरेत् || #एकाहं_चाप्यतिक्रम्य_सन्ध्यावन्दनकर्म_च | #अहोरात्रोषितो_भुक्त्वा_गायत्र्या_अयुतं_जपेत् || #द्विरात्रे_द्विगुणं_प्रोक्तं_त्रिरात्रे_त्रिगुणं_भवेत् || #त्रिरात्रानन्तरं_चेत्स्याच्छुद्र_एव_न_संशयः ||ब्र०क०समु०||
(समयोचित) सन्ध्यालोप हो जाय तो सविधिस्नान कर १०८ गायत्री जप के बाद संध्योपासना करें --
१ दिन संध्योपासना न हो सकें तो पूरे दिन उपवास कर दूध मात्र पीएँ तथा १०,००० जप करने के बाद पुनः सन्ध्योपासना प्रारंभ करें---
ऐसे दो रात्रि तक सन्ध्या रहित हो जाय तो --
दोगुने अर्थात् दो दिन दूधमात्र पर उपवास कर २०,००० गायत्री जप कराएँ, पुनः सन्ध्यारंभ करें--
तीन दिन सन्ध्या न करने पर तीन गुने अर्थात् तीनदिन दूधमात्र पर उपवास ३०,००० गायत्रीजप करावाँकर पुनः सन्ध्यारम्भ करें -- यदि चौथे दिन को कुछ प्रायश्चित्त नहीं होता हैं तो चौथे दिन तत्काल शुद्रत्व को प्राप्त होतें हैं...
यें प्रायश्चित्त रहित पतितों से यथोचित प्रायश्चित्त और तीन प्राजापत्यव्रत करवाकर पुनः यज्ञोपवीत संस्कार विधान से संस्कारयोग्य किया जाता हैं |
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री.उमरेठ ||
ॐस्वस्ति।।पु ह शास्त्री.उमरेठ।|

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