केशान्तम्

#षोडश_संस्काराः_खंड_१५२~
#केशान्तम्-
वेदारंभ के बाद वेदाध्ययन-काल ब्रह्मचारी गुरुकुल में ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता हैं तथा उसके लिये केश और श्मश्रु(दाढ़ी) मूँछ़, मौञ्जी मेखलादि धारण करनेका विधान हैं | जब विद्याध्ययन पूर्ण हो जाता हैं,तब गुरुकुल में ही केशान्त-संस्कार सम्पन्न होता हैं---
#केशानाम्_अन्तः_समीपस्थितः_श्मश्रुभाग_इति #व्युत्पत्त्या_केशान्तशब्देन_श्मश्रूणामभिधानात्_श्मश्रुसंस्कार #एव_केशान्तशब्देन_प्रतिपाद्यते | #अत_एवाश्वालायनेनापि_श्मश्रूणीहोन्दति | #इति_श्मश्रूणां_संस्कार_एवात्रोपदिष्टः||संस्का०दीप०२||
पूर्वोक्त विवरण में यह स्पष्ट किया गया हैं कि *केशान्त* शब्दसे श्मश्रु(दाढ़ी)- का ही ग्रहण होता हैं, अतः मुख्यतः श्मश्रु-संस्कार ही *केशान्त* संस्कार हैं | इसे *गोदान-संस्कार* भी कहा जाता हैं; क्योंकि *गौ* यह नाम केश(बालों) - का भी है और केशों का अन्तभाग अर्थात् समीपस्थित श्मश्रुभाग ही कहलाता हैं --- #गावो_लोमानि_केशा_दीयन्ते_खण्ड्यन्तेऽस्मिन्निति #व्युत्पत्त्या_गोदानं_नाम |
#ब्राह्मणादिनां_षोडशादिषु_वर्षेषु_कर्तव्यं - #केशान्ताख्यं_कर्मोच्यते || रघुवंश ३/३३ पद्ये मल्लिनाथव्याख्या ||
*गौ* अर्थात् लोम-केश जिसमें काट दिये जाते हैं, इस व्यत्पत्ति के अनुसार *गोदान* पद यहाँ ब्राह्मण आदि वर्णों के सोलहवें वर्ष में करने योग्य केशान्त नामक कर्म का वाचक हैं |
#षोडशवर्षस्य_केशान्तः || पा०गृ० २/१/२|| सोलह साल के किशोर का केशान्त संस्कार करना चाहिए |
#केशान्तः_षोडशे_वर्षे_ब्राह्मणस्य_विधीयते | #राजन्यबन्धोर्द्वाविंशे_वैश्यस्य_द्वयधिके_ततः ||मनुः २/६५||
भगवान् मनुने कहा हैं कि जन्मसे सोलहवें वर्ष के समाप्त होनेपर ब्राह्मण का, बाईसवें वर्ष में क्षत्रिय का और चौबीसवें वर्ष में वैश्य का यह संस्कार स्वयं आचार्य द्वारा किया जाना चाहिये |
#यथामङ्गलं_वा_सर्वेषाम् ||२/१/४ पा०गृ० || अथवा कुल की परम्परा के अनुसार (वर्ष में) सभी संस्कार किये जा सकतें हैं |
*चौल- संस्कार* में जो मूर्हुत दिये हैं, इसके अनुसार काल तथा दिन शुद्धि आदि युक्त मूर्हुत में यह संस्कार उत्तरायन में सम्पन्न होना चाहिये | #गङ्गायां_भास्करक्षेत्रे_मातापित्रोर्गुरोर्मृतौ | #आधाने_सोमपाने_च_वपनं_सप्तसु_स्मृतम् ||वीरमि०||
गङ्गाजी, प्रयागजी, माता पिता और गुरु के अवसान,श्रौताग्नि के आधान, सोमयाग में ऐसे सात जग़ह वपन होता हैं | अन्यथा नहीं |
#मुण्डनं_चोपवाससश्च_सर्वतीर्थेष्वयं_विधिः | #वर्जयित्वा_कुरुक्षेत्रं_विशालं(नैमिषं-पुष्करं)#विरजं_गयाम् ||
#प्रयागे_वपनं_कुर्याद्_गयायां_पिण्डपातनम् | #दानं_दद्यात्कुरुक्षेत्रे_वाराणस्यां_तनुं_त्यजेत् ||
कुरुक्षेत्र,नैमिषारण्य, पुष्कर और गया को छोड़कर मुण्डन और उपवास सभी तीर्थो में अनिवार्य हैं | वपन प्रयाग में, पिण्डदान गया में, कुरुक्षेत्र में दान और वाराणसी में देह छोड़ने का महत्व हैं(अथवा दुर्लभ हैं)|
#शिखां_छिन्दन्ति_ये_मोहाद्_द्वेषादज्ञानतोऽपि_वा | #तप्तकृच्छ्रेण_शुद्ध्यन्ति_त्रयो_वर्णा_द्विजातयः ||हारित||
यदि अज्ञानता से बाल कटवातें समय रखी हुई शिखा कट जाती हैं अथवा छोटी हो जाने के कारण उसमें ग्रन्थि लगाना सम्भव न हो तो द्विजों को तप्तकृच्छ्र व्रतद्वारा प्रायश्चित्त करना चाहिये |
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री.उमरेठ|| शेष पुनः




#षोडश_संस्काराः_खंड_१५३~
#केशान्त_विधानम्-
कृतनित्यक्रियो आचार्यः आचम्य || प्राणानायम्य||शिखांबद्ध्वा||सुमुखश्चत्यादि पठन्| मम अस्य ब्रह्मचारिणः केशान्ताख्यं कर्माहं करिष्ये | तदंगत्वेन गणपतिपूजनं पुण्याहवाचनं( कर्मांगदेवता शिखीनः प्रीयताम्) मातृकापूजनं नान्दीश्राद्धं च करिष्ये|| तानि कर्माणि क्रमेण समाप्य| पञ्चभूसंस्कारपूर्वकं वेदिकायां अग्निं संस्थाप्य|अग्निं ध्वात्वा अन्वाध्यायात्|| अन्वाधानम्- अत्र प्रजापतिमीन्द्रमग्निंसोमं एकैकयाज्याहुत्या-प्रधान अग्निं वायुं सोमं अग्निवरुणौ अग्निवरुणौ अग्निमयसं वरुणं सवितारं विष्णुं विश्वान्देवान्मरुतःस्वर्क्कान् वरुणमादित्यमदितिं प्रजापतिं चैताः केशान्त होमप्रधानदेवता एकैकयाऽज्याहुत्या|| अग्निंस्विष्टकृतं केशान्तकर्मण्यऽहं यक्ष्ये|| समस्तव्याहृदिनां प्रजापतिःबृहती प्रजापतिर्देवता अन्वाधानसमिद्धोमे विनियोगः| ॐभूर्भुवःस्वःस्वाहा-इदं प्रजापतये न मम|| दक्षिणतोब्रह्मासनादि चरुवर्जं पात्रासादने शीतोदकं उष्णोदकं नवनीतपिण्डो घृतपिण्डो दधिपिण्डो वा त्र्येणीशलली साग्राणि सप्तविंशतिकुशतरुणानि क्षुरः आनडुह(बलदका गोबर)गोमयपिण्डः गौः इत्युपकल्पनीयानि पवित्रीकरणादि आधारावाज्यभागान्तं हुत्वा "सभ्यनामाग्निं बहिर्नैवेद्यान्तं पञ्चोपचारैः सम्पूज्य|| भूरादिनवाहुतयः हुत्वा स्विष्टकृतादिकं कुर्यात् आपःशिवा००००० भेषजं इत्यन्तं मार्जनान्तं समापयेत्|| ततो लग्नसामयिक ग्रहप्रीतिकारक दानानि कृत्वा(मुर्हूतसमय अशुभ लग्नके स्वामिदेवता प्रीत्यर्थ वस्तुएँ ब्राह्मणको दान करैं)|| अद्येत्यादि००अस्य ब्रह्मचारिणः केशान्तकर्म कर्तुं अधिकारार्थं दक्षिण गोदानं मुण्डनं च करिष्ये|| तत एकस्मिन् पात्रे शीतास्वप्सूष्णाऽअप आसिंचति(एक पात्रमें गरम और ठंडे पानीकी धारा करैं) ॐउष्णेन वायउदकेनेह्यदिते केशश्मश्रुवप | | अथात्र नवनीतपिंडं घृतपिंडं दध्नो वा पिंडं प्रास्यति(उस गरम ठंडे मिश्र जलमें मख्खन,घी या दहीं डालें) || ततः उदकमादाय(वह मिश्र जल लेकर) दक्षिणगोदानं उंदति|(बालकके दायीं और रहैं बालोंमें लगायें) ॐसवित्रा प्रसूता दैव्याऽआपऽउन्दन्तुते तनूम्|दीर्घायुत्वाय वर्चसे|| ततस्त्रेण्या शलल्या केशान विनीय|(सीरौहीके तीन शलाकासे दायींबाजूके बालोंकी लट अलग करैं.)|| त्रीणि कुशतरुणान्यंतरदधाति||(पात्रासादनमें रखें२७कुशोंमें से तीन कुशोंको दायीबाजूकी बालोंकी लटोंमें परौंये) ॐओषधेत्रायस्व||बायें हाथसे यह कुशसहित बालोंकी लटको पकड़कर रखैं- शिवोनामासिमंत्रेण लोहक्षुरमादधाति---- (ॐशिवोनामासि... आधेमंत्रसे लोहेका अस्त्रा दायें हाथसे लें) ॐशिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्तेऽअस्तु मामाहि गूँ सीः||केशोंके साथ कुश और अस्त्रेको स्पर्श करायें.."केश कुश क्षुर संलग्निकरणम्-> ॐ निवर्त्तयाम्म्यायुखेन्नाद्याय प्प्रजननाय रायस्पोखाय सुप्प्रजास्त्वाय सुवीर्ज्जाय||दायें हाथके पकडे हुए अस्त्रेसे उन बालों का छेदन करैं-" ततः छेदनम्" अनेन मंत्रेण-ॐयेना वपत्सविता क्षुरेण सोमस्य राज्ञो व्वरुणस्य व्विद्वान्| तेन ब्ब्रह्मणोवपते दमस्यायुष्यं जरदष्टिर्यथासम्|| काटैं हुए बालोंसहित कुशोंको" अग्निसे उत्तरमें रखें हुए बलद(बैल)के गोबर में खोंस दैं| अनेन सकेशानि कुशतरुणानि प्रच्छिद्य || आनडुह गोमय पिंडे प्रास्य|| पुनः समस्त क्रीयाएँ मौन रहते हुए बिना मंत्र पढे दो बार करैं-" एवं द्विरपरं तूष्णीम्||तद्यथा- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| पुनः- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| इति दक्षिणगोदानम्|| पुनर्जलमादाय- अस्य ब्रह्मचारिणः केशान्तकर्म कर्तुमधिकारार्थं पश्चिम गोदानं मुंडनं च करिष्ये|इति संकल्प्य|(बालकके सिरके पीछली और रहैं बालोंमें लगायें) ॐसवित्रा प्रसूता दैव्याऽआपऽउन्दन्तुते तनूम्|दीर्घायुत्वाय वर्चसे|| ततस्त्रेण्या शलल्या केशान विनीय|(सीरौहीके तीन शलाकासे दायींबाजूके बालोंकी लट अलग करैं.)||त्रीणि कुशतरुणान्यंतरदधाति||(पात्रासादनमें रखें२७कुशोंमें से तीन कुशोंको दायीबाजूकी बालोंकी लटोंमें परौंये) ॐओषधेत्रायस्व||बायें हाथसे यह कुशसहित बालोंकी लटको पकड़कर रखैं- शिवोनामासिमंत्रेण लोहक्षुरमादधाति---- (शिवोनामासि... आधेमंत्रसे लोहेका अस्त्रा दायें हाथसे लें) ॐशिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्तेऽअस्तु मामाहि गूँ सीः||केशोंके साथ कुश और अस्त्रेको स्पर्श करायें.."केश कुश क्षुर संलग्निकरणम्->ॐ निवर्त्तयाम्म्यायुखेन्नाद्याय प्प्रजननाय रायस्पोखाय सुप्प्रजास्त्वाय सुवीर्ज्जाय||दायें हाथके पकडे हुए अस्त्रेसे उन बालों का छेदन करैं-" ततः छेदनम्" अनेन मंत्रेण -ॐत्र्यायुखञ्जमदग्ग्नेः कश्श्यपस्य त्त्र्यायुखम्|जद्देवेखु त्र्यायुखन्तन्नोऽअस्तु त्र्यायुखम्|| काटैं हुए बालोंसहित कुशोंको" अग्निसे उत्तरमें रखें हुए बलद(बैल)के गोबर में खोंस दैं| अनेन सकेशानि कुशतरुणानि प्रच्छिद्य || आनडुह गोमय पिंडे प्रास्य|| पुनः समस्त क्रीयाएँ मौन रहते हुए बिना मंत्र पढे दो बार करैं-" एवं द्विरपरं तूष्णीम्||तद्यथा- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| पुनः- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| इति पश्चिम गोदानम्|| हस्ते जलमादाय- अस्य ब्रह्मचारिणः केशान्त कर्मकर्तुमधिकारार्थं उत्तरगोदानं मुंडनं च करिष्ये| (बालकके सिर के बायीं और रहैं बालोंमें लगायें) ॐसवित्रा प्रसूता दैव्याऽआपऽउन्दन्तुते तनूम्|दीर्घायुत्वाय वर्चसे|| ततस्त्रेण्या शलल्या केशान विनीय|(सीरौहीके तीन शलाकासे दायींबाजूके बालोंकी लट अलग करैं.)|| त्रीणि कुशतरुणान्यंतरदधाति||(पात्रासादनमें रखें२७कुशोंमें से तीन कुशोंको दायीबाजूकी बालोंकी लटोंमें परौंये) ॐओषधेत्रायस्व|| बायें हाथसे यह कुशसहित बालोंकी लटको पकड़कर रखैं- शिवोनामासिमंत्रेण लोहक्षुरमादधाति--- (शिवोनामासि... आधेमंत्रसे लोहेका अस्त्रा दायें हाथसे लें) ॐशिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्तेऽअस्तु मामाहि गूँ सीः||केशोंके साथ कुश और अस्त्रेको स्पर्श करायें.."केश कुश क्षुर संलग्निकरणम्-> ॐ निवर्त्तयाम्म्यायुखेन्नाद्याय प्प्रजननाय रायस्पोखाय सुप्प्रजास्त्वाय सुवीर्ज्जाय||दायें हाथके पकडे हुए अस्त्रेसे उन बालों का छेदन करैं-" ततः छेदनम्" अनेन मंत्रेण -ॐयेन भूरिश्चरादिवं ज्योक्च पश्चाद्धि सूर्यम्| तेन ते वपामि ब्रह्मणा जीवातवे जीवनाय सुश्लोक्याय स्वस्तये|| काटैं हुए बालोंसहित कुशोंको" अग्निसे उत्तरमें रखें हुए बलद(बैल)के गोबर में खोंस दैं| अनेन सकेशानि कुशतरुणानि प्रच्छिद्य || आनडुह गोमय पिंडे प्रास्य|| पुनः समस्त क्रीयाएँ मौन रहते हुए बिना मंत्र पढे दो बार करैं-" एवं द्विरपरं तूष्णीम्||तद्यथा- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| पुनः- दहींवाला जल लगायें" उन्दनम्"| तीनकांटोसे बालोंको सहरायें" विनयनम्"|तीन कुशोंको बालोंमें खोसैं" त्रिकुशतरुणान्तर्धानम्| अस्त्रा लेवें-" क्षुर ग्रहणम्"|बालों तथा कुशको अस्त्रे का स्पर्श करायें"संलग्नीकरणम्"| दायें हाथमें पकड़ें हुए अस्त्रेसे बालोंका छेदन करैं"छेदनम्"| काटैं हुए बालोंको गोबरमें छुपायें"आनडुह गोमय पिंडे प्रासनम्|| इति उत्तर गोदानम्|| अस्त्रेको बंध करके बालकके सिरके आजुबाजु प्रदक्षिणरितिसे घुमाकर मुख के (मूँछ तथा दाढ़ी) पर भी स्पर्श कराएँ - " क्षुरेण शिरः प्रदक्षिणं परिहरति संमुखं केशान्ते -- ॐयत्क्षुरेण मज्जयता सुपेशसा वप्तावावपति केशाञ्छिन्धि शिरोमास्यायुः प्रमोषीर्मुखम् || पुनः बिना मंत्र दो बार अस्त्रेको घुमायैं-" द्विस्तूष्णीम्"|| दहीं वाले जलसे सिरके सभी बालोंको गिलें करैं-" ततस्तेनैवोदकेन सर्वं शिर आर्द्रं कृत्वा"| अस्त्रा मंत्रपढकर नापितको दैं दे" क्षुरं नापिताय प्रयच्छति"| ॐअक्षुण्वन्परिवप|| नापित कहता हैं-" वपामि"|इति नापितो ब्रूयात्| नापित उत्तराभिमुख बैठे हुए कुमारके पूर्वकी तरफ तक और पूर्वाभिमुख बैठे हुए कुमारके उत्तरी तरफ तक बाल मूँछ और दाढ़ी साफ करैं|-" नापितः उदङ्ग मुख स्थितस्य बालकस्य प्राक्संस्थं प्राङ्ग मुख स्थितस्य उदकसंस्थं केश-श्मश्रुर्वपनं कुर्यात् कुलव्यवस्थासे शिखा रखें(बिना शिखा रखें मुंडन न कर दैं)-" कुलव्यवस्थया शिखास्थापनं केशशेषं करोति|| मुंडे हुए सभी बालों गोबरमें छुपाकर वस्त्रसे वेष्टितकर तालाब या जलाशयमें प्रवाहित करैं-" ततः सर्वान्केशान् गोमयपिंडे वस्त्रादिनाऽऽवेष्टय अनुगुप्तं कृत्वा तडागे जलमध्ये वा प्रक्षिपेत्|| बालकको स्नान करवाकर मस्तकमें स्वस्तिक तथा ललाटमें तिलक करैं|-> ततः कुमारं स्नापयित्वा मस्तके स्वस्तिकं तथा च ललाटे तिलकं कुर्यात्| आचार्याय गोदानम् || लम्बोदर नमस्तुभ्यं००|| यथा शक्त्या केशान्तकर्म विधेः परिपूर्णताऽस्तु | अस्तुपरिपूर्णः|
ॐस्वस्ति ||पु ह शास्त्री| उमरेठ|| शेष पुनः




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