मनुष्य को सूर्योदय से पूर्व ही उठना चाहिए

शास्त्रीय दृष्टि से मनुष्य को सूर्योदय से पूर्व ही उठना चाहिए । जैसा कि श्री भगवान् वेद संकेत करते हैं कि यह उषा, सूर्य के उदय के पूर्व चमकती है। आशय यह है कि उषाकाल पहले आता है फिर सूर्योदय होता है। यह भाग्यशाली उषा लोगों के पास सैकड़ों रथों से आती है-
ऐसे ही , एक अन्य मन्त्र भी इसी बात की पुष्टि बड़े स्पष्ट शब्दों में करता हुआ कहता है कि सुन्दर उषा लोगों को जगाती है, मार्गों को सुगम बनाती है, आगे बढ़ती है, सबमें व्यापने वाली तथा दिनों के प्रारम्भ में प्रकाश की ज्योति देती है-
प्रातः काल उपासना करने का काल ब्राह्ममुहूर्त ही है। ब्राह्ममुहूर्त के विषय में कहा गया है -
#रात्रेश्च_पश्चिमे_यामे_मुहूर्तो_ब्राह्म_उच्यते।’
(संस्कृतहिन्दीकोष, छात्रसंस्करण, वामनशिवराम आप्टे, पृष्ठ-७२४ नागप्रकाशक, दिल्ली-७)
श्री मनु लिखते हैं-
ब्राह्ममुहूर्त में उठने के पश्चात् शौचादि कार्यों से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख बैठकर संध्या और जप करे, मनु ऐसा भी विधान करते हैं-
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पञ्च पांडवों द्वारा वनवास काल में विनिर्मित परम पवित्र #श्री_देवलहाट_मन्दिर , इस भाव से कि हे परमात्मन् ! असत्य के उपर हम विजय कर पायें ! वायोत्तड पर्वतमाला , सुदूर पश्चिम , नेपाल
।। जय श्री राम ।।





#दिवा_निद्रा_निषेध-->
उपनीत-ब्राह्मणों को ब्राह्मणत्व के रक्षण हेतु दिन में शयन नहीं करना चाहिए ---> *#न_दिवा_प्रस्वपेत् ||महाभा०अनु० २४३/६|| #दिवास्वापं_च_वर्जयेत् || नारद पु०पू० २६/२७|| #दिवास्वप्नं_च_वर्जयेत् || सुश्रु०सं० शा०४/३९||*
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*#दिवसे_सन्ध्ययोर्निद्रां_स्त्रीसम्भोगं_करोति_यः | #सप्तजन्म_भवेद्रोगी_दरिद्रः_सप्तजन्मसु || ब्रह्मवै०पु० श्रीकृष्ण ७५/८०||*
दिनमें और दोनों संध्या समय जो शयन या स्त्रीगमन करता हैं, वह सात जन्मतक रोगी तथा दरिद्र बनता हैं |
*#आयुर्हन्ति_दिवा_निद्रा_दिवा_स्त्री_पुण्यनाशिनी ||*
दिन में शयन करने से आयुष्य क्षीण तथा स्त्रीगमन करने से पुण्यों का नाश होता हैं |
#अभूत्यैस्वपनम् || शु- य० ३०/१७|| सोना दरिद्रता का मूल हैं |
*( सर्वर्तुषु दिवास्वापः प्रतिषिद्धोऽन्यत्र ग्रीष्मात् ----> प्रिषिद्धेष्वपि तु बाल, वृद्ध,स्त्रीकर्शित क्षत क्षीण मद्य नित्ययानवाहनाध्वकर्म परिश्रान्तानामभुक्तवतां मेदः स्वेदकफरसरक्तक्षीणानामजीर्णिनां च #मुर्हतं दिवास्वपनमप्रतिषिद्धम् | रात्रावपि जागरितवतां #जागरितकालादर्धमिष्यते दिवास्वपनम् || सुश्रुत सं० शा० ४/३८||)*
सभी ऋतुओं में दिन में शयन करना निषिद्ध हैं, परंतु *ग्रीष्मऋतु में दिन में (४८ मिनट् ही ) शयन करना निषिद्ध नहीं, इसके अतिरिक्त बालक, रात्री स्त्रीसेवन से कृश, क्षतरोगी, क्षीण, मद्यप, यान-वाहनयात्रा अथवा परिश्रम करने से थकने से, भोजन न करनेवालें, मेद-कफ स्वेद-रस-रक्त से क्षीण होनेवालें और अजीर्ण के रोगी को मुर्हूतमात्र(४८ मिनट़ ही) दिन में शयन कर सकता हैं, जिन्होंनें व्रतादिकमें रात्रिजागरण किया हो वह भी रात्रिजागरण के आधेसमय तक उदा० ४ घंटे जागरणवाला दिन में २ घंटे तक आदि,,,,, शयन कर सकतें हैं |
गीताजी में कहा हैं कि सम्पूर्ण देहधारियों को मोहित करनेवाले तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न होनेवाला समझें, वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा द्वारा मनुष्य को बाँधता हैं -- तथा तमोगुण ज्ञान को ढ़ककर एवं प्रमाद में लाकर मनुष्य पर विजय होता हैं | #मन्तव्यः -- अतः तमोगुणी निद्रा को दिनमें वश करना चाहिए और यथार्थ ज्ञान से #तमसो_मा_ज्योतिर्गमय की और बढ़ना चाहिए ---> *#तमस्तज्ञानजं_विद्धि_मोहनं_सर्वदेहिनाम्#प्रमादालस्य_निद्राभिस्तन्निबध्नाति_भारत||१४/८|| #सत्त्वं_सुखे_संजयति_रजः_कर्मणि_भारत || #ज्ञानमावृत्य_तु_तमः_प्रमादे_सञ्जयत्युत ||१४/९||*
हे भरतवंशिन् ! सत्त्वगुण सुख में आसक्त करता है; रजोगुण कर्म में प्रवृत्त करता है और तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद,आलस्य और निद्रा में लगाता है |
इस विषय को स्पष्ट करने के लिये एक उदाहरण दिया जाता है.एक पुरुष दिन को नींद लेता है | दिन में नींद लेना धर्म होगा या अधर्म, इसका निश्चय करने में हमें यही विचारना चाहिये कि दिन में सोने से किस गुण की वृद्धि और किस गुण की हानि होगी.दिन में सोने से तमोगुण की वृद्धि होना अनिवार्य है; क्योंकि तमोगुण का फल अज्ञान है,जो सबको मोहित करता है और प्रमाद, आलस्य और निद्राद्वारा बन्धन का कारण होता है.इसलिये तमोगुण की वृद्धि करने के कारण दिन में सोना जीव की क्रमोन्नति में बाधा करता है.अतएव यह दिन को सोना रूप कर्म अधर्म का कारण हुआ.क्योंकि जीव में जितना तमोगुण या अज्ञान स्पर्श करेगा,उतना ही जीव जड़ता को प्राप्त होता जायगा और जो कर्म जितना ही सत्त्वगुण की वृद्धि करेगा,उतना ही जिव चैतन्य को प्राप्तकर मुक्ति अथवा लय की ओर आगे बढेगा
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*#विद्यार्थी_सेवकः_पान्थः_क्षुधाऽऽर्तो_भयकातरः | #भाण्डारी_प्रतिहारी_च_सप्त_सुप्तान्_प्रबोधयेत् || चाण०९/६ ||*
विद्यार्थी, नोकर, पथिक, भूख से पीड़ित, भयभीत, भंडारी और द्वारपाल --- यह शयन कर गएँ हो तो इन्हें जगादेना चाहिए |
#न_स्वप्नेन_जयेन्निद्राम् ||महा०उद्यो०३९/८१|| अर्थात् लेट कर आराम करतें हुएँ निद्रा को जितने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए...
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निद्रा का महत्वकारण - अतिभोजन करने से आरोग्य,आयुष्य,स्वर्गगति,को हानि होकर पुण्यनष्ट तथा लोगों में अपयश को पाता हैं इसलिए मिताहार करना चाहिए ---> *( अनारोग्यमनायुष्यमस्वर्ग्यमतिभोजनम् | अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ||मनुः ||)*
*भोजने ग्रास संख्या --( अष्टौ ग्रासा मुनेर्भक्ष्याः षोडशाऽरण्यवासिनः / द्वात्रिंशत्तु गृहस्थस्य ह्यमितं ब्रह्मचारिणः ||आपस्तंबः||)*----
८ ग्रास संन्यासीओं को, १६ ग्रास वानप्रस्थीओं को, ३२ ग्रास गृहस्थीओं को तथा मिताहार ब्रह्मचारिओं के लिए हैं | उचित ग्रास से न्यून भोजन पुण्यप्रद हैं परंतु अधिक दूसरे के भाग का खाने के समान चोरी हैं।
स्मृतिओं में --- > *#भोजने_आमलकप्रमाणेन_ग्रासमानं_विधियते ||* -- एक पक्के बड़े आँवलेके फल की मात्रा के अनुसार १ ग्रास होता हैं, बड़े और परिश्रमवालें के लिए *#कुक्कुटाण्ड_प्रमाणेन_ग्रासमानं ||* -- कुकडी़ के अण्डे़ की मात्रा समान बड़ा ग्रासमान हैं |
भोजनान्ते सौ कदम चलकर वामकुक्षी करें परंतु सोए नहीं --- *(आह्निकसूत्रे-------> भोजनान्ते शतपदं गत्वा"""---- शयनं वामकुक्षौ)* क्योंकि वहाँ ही *(इतिहास पुराणानि धर्मशास्त्राणि चाभ्यसेत् |)* आदि लिखा हैं --- मनुभगवान् कहतें हैं कि ---> *( स्वर्गायुष्ययशस्यानि व्रतानीमानि धारयेत् //४/१३// बुद्धिवृद्धिकराण्याशु धन्यानि च हितानि च / नित्यं शास्त्रण्यवेक्षेत निगमांश्चैव वैदिकान् // ४/१९// यथा यथा हि पुरुषः शास्त्रं समधिगच्छति / तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते // ४/२०// )*
स्वर्ग, आयुष्य और यश देनेवालें इन व्रतों को धारण करें --- > ब्राह्मण को बुद्धि को बढ़ानेवालें व्याकरण, मीमांसा, स्मृतियाँ, पुराणों तथा न्यायशास्त्र --- धन को बढ़ानेवालें-- अर्थशास्त्र, और हितकर - ज्योतिष ,आयुर्वेद आदि शास्त्र तथा वेदार्थ प्रकट़ करने वालें शास्त्रों का विशेष कर #शांकरभाष्यों तथा #शंकराचार्यजी के समस्त ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए | मनुष्य जैसे जैसे शास्त्रों का अध्ययन करता हैं, ऐसे ऐसे विशेष ज्ञान पाता हैं और उसका ज्ञान तेजस्वी होता हैं |
*( मन्त्रतस्तु समृद्धानि कुलान्यल्पधनान्यपि / कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति च महद्यशः // ३/६६|| )* ---> जो कुल वेदमंत्रों से समृद्ध हो, वह अल्प धनवालें भी हो तो भी श्रेष्ठकुल को प्राप्त होकर यश पाता हैं |
*(सावित्रीमात्रसारोऽपि वरं विप्रः सुयन्त्रितः / नायन्त्त्रितस्त्रिवेदोऽपि सर्वाशी सर्वविक्रयी // २/११८||)*--- > शास्त्रीय नियमों का पालन यथोचित करनेवाला ब्राह्मण मात्र गायत्रीमंत्र ही क्युं न जानता हो तो भी वह श्रेष्ठ हैं, परंतु सभी वेदों को पढ़कर भी यदि शास्त्रीय नियमों में न रहनेवाला ,अभक्ष्यादि खाने-पीनेवाला तथा निषिद्ध आचरण करनेवाला श्रेष्ठ नहीं हैं |
#ब्राह्मणत्व की रक्षा हेतु दिन में शयन न कर वेदार्थी-- अनध्याय के दिन से अतिरिक्त दिनों में स्वाध्याय करें - धर्मशास्त्रों का श्रवण मनन निदिध्यास करें - सभी ब्राह्मण ---- हो सके इतने ज्यादा गायत्रीजप करतें रहैं ||
*ब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु*
ॐस्वस्ति ||

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