वर्धापन विधानम्-जन्मतःद्वितीयजन्मादौ च प्रतिवर्षं जन्मतिथौ

षोडशसंस्काराः(वर्धापन विधानम्-जन्मतःद्वितीयजन्मादौ च प्रतिवर्षं जन्मतिथौ)खंड ८५ ~ यह विधान जबतक बालक स्वयं समजकर करने समर्थ न हों जायें तबतक बालकके पिता करैं...
शीतोदकेन प्रातरभ्यङ्गस्नानं कृत्वा सन्ध्यावन्दनं समाप्य सबालः सपत्नीक यजमानः शांतिसूक्त पठनान्तरं आचम्य त्रिःप्राणानायम्य शिखां बध्वा" सुमखश्चेत्यादि पठित्वा" देशकालो संकीर्त्य- अस्य(अस्या:)बालस्य(बालिकायाः){स्वयं करणे - मम} दीर्घ आयुष्याभिवृद्धि अर्थं आयुष्करदेवताः प्रेरणया सनातन धर्म संस्कृति विकासाय धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थं वर्धापनाख्यं कर्म करिष्ये.....
तदङ्गत्वेन गणपतिपूजनं पुण्याहवाचनं च (पुण्याहवाचन कर्माँग देवता प्रजापतिः प्रीयताम्) करिष्ये..... षोडशोपचारैः गणपतिपूजनं च विधानेन पुण्याहवाचनं समाप्य;
काष्ठपीठे श्वेत वस्त्रं प्रसार्य तदुपरि सप्तसप्तैवपङ्क्तिरूपेण द्विचत्वारिंशत् अक्षतपुंजेषु-
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तत्र प्रथम पंक्तौ -
१ॐगणपतये नमः-गणपतिं आवा०स्था(सर्वत्र)
२ॐदुर्गायै नमः-दुर्गां०
३ॐकुलदेवतायै नमः-कुलदेवतां०
४ॐगुरुभ्यो नमः-गुरुन्०
५ॐप्रजापतये नमः-प्रजापतिं०
६विष्णवे नमः-विष्णुं०
७ॐमहेश्वराय नमः-महेश्वरं०
द्वितीयपङ्क्तौ सप्ताक्षतपुंजेषु-
१ॐअग्नये नमः-अग्निं०
२ॐविप्रेभ्यो नमः- विप्रान्०
३ॐमातृभ्यो नमः-मातॄृः०
४ॐपितृभ्यो नमः-पितॄ:०
५ॐसूर्याय नमः-सूर्यं०
६ॐसोमाय नमः-सोमं०
७भौमाय नमः-भौमं०
तृतीयपङ्क्तौ सप्ताक्षतपुंजेषु-
१ॐबुधाय नमः-बुधं०
२ॐबृहस्पतये नमः-बृहस्पतिं०
३ॐशुक्राय नमः- शुक्रं०
४ॐशनैश्चराय नमः-शनैश्चरं०
५ॐराहवे नमः-राहुं०
६ॐकेतवे नमः-केतुं०
७ॐपञ्चभूतेभ्यो नमः-पञ्चभूतान्०
चतुर्थपङ्क्तौ सप्ताक्षतपुंजेषु-
१ॐकालाय नमः-कालं०
२(जन्मका युग)ॐ___युगाय नमः- युगं०
३(प्रभवादि ६०संवत्सरमें से जन्मसंवत्सरका नाम)ॐ __संवत्सरायनमः- __संवत्सरं०
४(जन्मका अयन"दक्षिण या उत्तर)ॐ__अयनाय नमः-____अयनं०
५(६ऋतुमेंसे जन्मकी ऋतु)ॐ___ऋतवे नमः-____ ऋतुं०
६(चैत्रादि १२मासमें से जन्मका वैदिक मास)ॐ____मासाय नमः-_____मासं०
७(जन्मके मासका पक्ष"शुक्ल या कृष्ण)ॐ__पक्षाय नमः-___पक्षं०
पञ्चमपङ्क्तौ सप्ताक्षत पुंजेषु-
१(प्रतिपदादि १६तिथियोंमे से जन्मकी तिथि)ॐ____तिथये नमः-___तिथिं०
२(अश्विन्यादि २७नक्षत्रोंमें से जन्मका नक्षत्र)ॐ___नक्षत्राय नमः-___नक्षत्रं०
३(विष्कुंभादि २७योगोमें से जन्मका योग)ॐ____योगाय नम:-____योगं०
४(बव आदि ११करण में से जन्मका करण)ॐ___/करणाय नमः-____करणं०
५(मेष वृषभ आदि १२राशियोंमें से जन्मकी राशि)ॐ___राशये नमः-___राशिं०
६(मेष वृषभ आदि १२लग्नोंमें से जन्मका लग्न)ॐ__लग्नाय नमः-____लग्नं०
७ॐशिवायै नमः-शिवां०
षष्ठमपङ्क्तौ सप्ताक्षत पुंजेषु-
१ॐसम्भूत्यै नमः-सम्भूतिं०
२ॐप्रीत्यै नमः-प्रीतिं०
३ॐसन्तत्यै नमः-सन्ततिं०
४ॐअनसूयायै नमः-अनसूयां०
५ॐक्षमायै नमः-क्षमां०
६ॐवैष्णव्यै नमः-वैष्णवीं०
७ॐभद्रायै नमः-भद्रां०
पंक्तिरूपेणाष्टदलानि त्रिणि विरच्य तदुपरि पुगीफलेषु-
१ॐषष्ठीदेव्यै नमः-षष्ठीदेवीं०
२ॐमार्कण्डेयाय नमः-मार्कण्डेयं०
३ॐजमदग्नये नमः-जमदग्निं०
पुनस्तदग्रे पंक्तिद्वयरूपेणाष्टाऽष्टाक्षत पुजेषु
प्रथमपङ्तौ अष्टाक्षत पुंजेषु-
१ॐव्यासाय नमः-व्यासं०
२ॐअश्वत्थाम्ने नमः-अश्वत्थामानं०
३ॐपरशुरामाय नमः-परशुरामं०
४ॐकृपाचार्याय नमः-कृपाचार्यं०
५ॐबलये नमः-बलिं०
६ॐप्रह्लादाय नमः-प्रह्लादं०
७ॐहनुमते नमः-हनुमन्तं०
८ॐविभीषणाय नमः-विभीषणं०
द्वितीयपङ्क्तौ अष्टाक्षत पुंजेषु-
१(जन्मका स्थान)ॐस्थानदेवतायै नमः- स्थान देवतां०
२ॐवास्तुदेवतायै नमः-वास्तुदेवतां०
३ॐक्षेत्रपालाय नमः-क्षेत्रपालं०
४ॐपृथिव्यै नमः-पृथिवीं०
५ॐअद्भ्यो नमः-अपः०
६ॐतेजसे नमः-तेजं
७ॐवायवे नमः-वायुं०
८ॐआकाशाय नमः-आकाशं०
मंडलपरितः दशदिक्षु क्रमेण दशदिक्पालान्-
१इन्द्राय नमः-इन्द्रं०
२ॐअग्नये नमः-अग्निं०
३ॐयमाय नमः-यमं०
४ॐनिर्ऋतये नमः-निर्ऋतिं०
५ॐवरुणाय नमः-वरुणं०
६ॐवायवे नमः-वायुं०
७ॐ कुबेराय नमः-कुबेरं०
८ॐईशानाय नमः-ईशानं०
इन्द्रेशानयोर्मघ्ये-ॐब्रह्मणे नमः-ब्रह्माणं०
निर्ऋतिवरुणयोर्मघ्ये- ॐअनन्ताय नमः-अनन्तं० इत्यावाह्य"
ॐमनोजुति०इति प्रतिष्ठाप्य" ॐभूर्भुवःस्वः गणपत्यादि दिक्पालान्त आयुष्कर देवताभ्यो नमः इति आसनादि मंत्रपुष्पांजल्यन्तं सम्पूज्य"
षष्ठीदेव्यै दध्योदनं अन्येभ्य श्च विविध प्रकारं नैवेद्यं समर्प्य"
प्रार्थना- जय देवि जगन्मातर्जगदानंदकारिणि|प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठिदेवते||आयुःप्रद महाभाग सोमवंश समुद्भव||महातपोनिधि श्रेष्ठ मार्कंडेय नमोस्तु ते||चिरंजीवो यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने||रूपवान्वित्तवानायुः श्रिया युक्तं शिशुं कुरु||मार्कण्डेय नमस्तेस्तु सप्तकल्पांतजीवन||(आयुरारोग्यं मे देहि प्रसीद भगवन्मुने||)वा(आयुरारोग्यं बालाय(बालायै)देहि त्वं भगवन्मुने||चिरंजीवो यथा त्वं भो मुनिनां प्रवरो द्विजः||कुरुष्व मुनि शार्दूल (तथा मां चिरजीविनम्||)वा {बालं (बालां)मे चिरजीवनम्||}||
जमदग्ने महाभाग महातेजोमयोज्ज्वल||आयुरारोग्य सिद्ध्यर्थं(अस्माकं वरदो भव)वा{बालाय(बालायै)वलदो भव}||त्रैलोक्ये यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च||ब्रह्मविष्णुशिवैः सार्धं रक्षां कुर्वन्तु तानि मे|| प्रीयतां देवताः सर्वाःपूजां गृह्णन्तुता मम||प्रयच्छंत्वायुरारोग्यं यशः सौख्यं च सर्वदा||मंत्रन्यूनं क्रियान्यूनं द्रव्यन्यूनं महामुने||यदर्चितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे||अनया पूजया गणपत्याद्यावाहित देवताः प्रीयंताम् न मम||
सर्वेभ्योभूतेभ्यो नमः पायस बलिं समर्पयामि||इति बलिं दत्वा"
हस्तमात्रास्थंडिले पञ्चभूसंस्कार पूर्वकं अग्निं संस्थाप्य" अग्निं ध्यात्वा ब्रह्मासनादि पायसचरोश्च आज्यभागान्तम् कुशकंडिकां समाप्य"
ॐभूर्भुवःस्वः अग्नये नमः इति पञ्चोपचारैः सम्पूज्य"
पूजितदेवताभ्यो नाममंत्रैः प्रत्येकं अष्टाविंशतिरष्टौ वा घृताक्ततिलैर्जुहुयात्||आयुरारोग्य वृद्ध्यर्थं षट्प्रणवयुक्त महामृत्युंजय मंत्रेण अष्टोत्तरशत संख्यया घृतमधुरान्वितपायसेन होमः(मंत्रमहोदधौ-स्व जन्मदिवसे यस्तु पायसैर्मधुरान्वितैः||जुहोति तस्य वर्द्धन्ते कमलारोग्यकीर्तयः||अष्टोत्तरशतं दूर्वात्रिकहोमाद्रुजांक्षयः||)
समस्तव्याहृतिहोमं च समाप्य अग्नेर्स्विष्टकृद्धोमं समाप्य" नवाहुतयः संस्रवप्राशनम्" पवित्राभ्यां मार्जनम्"ब्रह्मणे पूर्णपात्रदानम्"अग्नौपवित्रप्रतिपत्तिः"
अनेन वर्धापनहोम कर्मणा परमेश्वरः प्रीयतां न मम||
ससुवर्णतिलपात्रदानम्||घृतपूरितकाँस्यपात्रदानम्||
ततस्तिल शर्करायुतं पयः पिबेत्||तत्रमंत्रः-स तिलं शर्करामिश्रमञ्जल्यर्धमितं पयः||मार्कण्डेयाद्वरं लब्ध्वा पिबाम्यायुर्विवृद्धये||इति मंत्रेण पिबेत्" ब्राह्मणान्संपूज्य तेभ्यश्च दक्षिणां दत्वा तैराशिषो गृहित्वा ब्राह्मणान् भोजयेत्||
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खण्डनं नखकेशानां मैथुनाध्वगमौ तथा||आमिषं कलहं हिंसां वर्षवृद्धौ विवर्जयेत्||
नाखुन तथा केश कटवाँना मैथुन यात्रा माँस क्लेशकरना हिंसाकरना यह सब जन्मदिनपर वर्ज्य हैं.
मृते जन्मनि संक्रान्तौ श्राद्धे जन्मदिने तथा|| अस्पृश्यस्पर्शने चैव न स्नायादुष्णवारिणा||
मरण(स्मशान गमने). जन्मतिथि संक्रान्ति .श्राद्ध .तथा अस्पृश्यको स्पर्श करनेपर गरम पानीसे नहाना नहीं चाहिये...
ॐस्वस्ति||पु ह शास्त्री||उमरेठ|| शेष पुनः

षोडशसंस्काराः(जन्मोत्सव)खंड८३-
संस्कार जगाओ-संस्कृति बचाओ~
संस्कार सम्पन्न सन्तान ही गृहस्थाश्रमकी सफलताका सच्चा लक्षण हैं.हर मां बाप चाहतें हैं कि उनकी संतान उनकी अपेक्षाके अनुसार बनैं;परंतु कई बाहरी परिस्थितियाँ सांस्कृतिक प्रदूषण,उपभोक्ता संस्कृति जैसे कारण आजकी युवा पीढी़ एवं बच्चोंको अपनी गिरफ्तमें लिये हुए हैं.खान पान,रहन सहन,तौर तहज़ीब,चिन्तन मनन सभी क्षेत्रोमें पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता हावी होती जा रही हैं.कुसंस्कारों की बाढ़में डूबनेसे पहले ही हमें सचेत होना पड़ेंगा.घर संस्कारोकी स्थली हैं अतः संस्कारित करनेका कार्य हमैं घरसे ही प्रारम्भ करना होगा.संस्कारोंका प्रवाह हंमेशा बड़ोंसे छोटोंकी ओर होता हैं.
आजकल उद्देश्य हिन जन्मोत्सव मनाया जा रहा हैं. जीसे लोग बर्थ डे के नामसे जानतें हैं जो विधि विधान हिन तथा हिंसक तामस का प्रतिक हैं.
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्||श्रद्धाविरहितं यज्ञ तामसं परिचक्षते||गीता17/13||
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खैर !बालककी वर्षगाँठ मनाना अच्छी बात हैं.पर कैसे मनायैं?
मनुष्यका जीवन दीर्घायु एवं सुखमय हों,इसके लिये प्रत्येक वर्ष चैत्रादि मास अनुसार जन्मतिथिपर वर्धापन विधान बताया हैं.मनुष्यके जन्मके अनन्तर पहले वर्ष प्रत्येक मासमें जन्मतिथिको*अखण्डित दीप प्रज्वलित पूर्वक जन्मोत्सव मनाने का विधान हैं. प्रथम वर्ष व्यतित होनेके उपरान्त प्रत्येक वर्ष जन्मतिथिपर जन्मोत्सव मनाया जाता हैं... पहले वर्षमें मार्कंडेय पूजा तथा दूसरे जन्मवर्षकी जन्मतिथिपर प्रतिवर्ष वर्धापन विधान होता हैं. जब प्रतिवर्ष वैदिक चैत्रादि मास तथा प्रतिपदादि वैदिक तिथियोंमें अपने जन्मतिथि अनुसार वैदिक (प्रथम वर्ष-मार्कंडेयपूजा/दूसरे वर्षसे वर्धापन विधान)करतें हों तो जन्म संवत्सर-वर्ष -मास -तिथि -नक्षत्र योग -करण - राशि आदिके देवताओं प्रसन्न होकर संवत्सर पर्यन्त रक्षा बल उत्साह तथा आयुवद्धि करतें हैं... शिष्टाचार होता हैं.
परंतु क्या ईसासन के अनुसार तारीख का कोई महत्व हैँ? नहीं; तारीखके अनुसार जन्मोत्सव मनानेसे संस्कृतिसे असभ्यता और विकृतियाँ ही रहैंगी. क्योंकी बर्थडे पर तो लोग कैक काटतें हैं(पाशवीक हिंसावृत्ति) बत्तीयाँ बुझातें हैं(संस्कृति दीप बुझाना नहीं दीप प्रगटाना सीखाती हैं.घरके बच्चेको कुलदीपक कहतें हैं. हैप्पी नहीं कहतें.. संस्कृति च्छिन्नता). फूंकमारकर कैकपर रखी हुई बत्तीयाँ बुझाकर कैकको जूठाकर रीश्तेदारोंको खीलाओ. संस्कृतिमें जुठा खाना खीलाना भी दोष हैं. फूंकमारनेसे मूँहकी हवा द्वारा कैकमें थूँक भी मिलजाती हैं.)पार्टी दैना असभ्य गाना गाना बजाना या सुनना फालतु खर्चे विषयवृत्तियोंको भड़काना यह विकृति हैं. (संस्कृति जन्मदिनपर भगवत् स्मरण और दान पुण्य करवातीं हैं)
जो व्यक्ति वैदिक जन्मतिथि अनुसार जन्मतिथि पर जन्मोत्सव न मनाकर ईसा सन अनुसार जन्म तारीखपर जन्मोत्सव(बर्थ डे)संस्कृति च्छिन्नकर मनाता हैं.,उस व्यक्तियोंको जन्मके वैदिक संवत्सरादिक राश्यन्त देवता संवत्सर पर्यन्त कष्टप्रद हो जातें हैं.... क्योंकि जन्मदिनके देवताओकी अवहेलना कर व्यर्थ संस्कृति हीन अंग्रेज तारीख अनुसार जन्मोत्सव मनायें जातें हैं.

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