पुत्रोत्पत्ति_विधान
#पुत्रोत्पत्ति_विधान=->
अथर्ववेद में पुत्र ही उत्पन्न करनेवाले पुंसवन संस्कार का उल्लेख हुअा हैं | पुंसवन-संस्कार का साङ्गोपाङ्गविधान अपने अपने कुल से प्राप्त वेद-शाखा-सूत्रोंनुसार करना चाहिये औषधीवर्ग भी शाखासूत्रों में भिन्न भिन्नरूप से दिये हैं | पुंसवनौषधी किसी भी प्रकार की ग्रहण करें पर विधान स्ववेदशाखानुसार होना आवश्यक हैं | अथर्ववेद में पुंसवन के लिए जो औषधि उपभोग आती रही हैं उसमें अश्वत्थ(पीपल) के सम्बन्ध में कहा हैं ----> *#शमीमश्वत्थ_आरूढ़स्तत्र_पुंसवनं_कृतम् | #तद्वै_पुत्रस्य_वेदनं_तद्_स्त्रीष्वा_भरामसि ||६/११/१||
शमीवृक्ष(छोंकरा)पर उत्पन्न हुआ पीपल पुंसवन (पुत्रोत्पत्ति) करता हैं इसके लिए स्त्री को इसका स्ववेदविधान से सेवन करना चाहिए | विशेषरूप गर्भस्थिति के तीसरे महिने से लेकर सेवन करायें जबकि गर्भ में भ्रूण का लिंग बनता हैं | गर्भ स्थापना के दो महिने तक कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या लिंग होगा | गर्भाधान के पूर्व ही खिलाया जाय तो और भी अच्छा हैं पर पुंसवन-संस्कार के दूसरे वा तीसरे महिने में संस्कार करना अनिवार्य ही हैं, तीसरे महीने के बाद व्यर्थ हैं |
क्योंकि--- बलवान पुरुषार्थ देव को भी लांघ जाता हैं --> #बली_पुरुषकारो_हि_दैवमप्यतिवर्तते || अष्टाङ्ग हृ०||
तत्रैव चरकः --> बलवान कर्म दूसरे निर्बल कर्म को व्यर्थ कर देतें हैं ---> #देवं_पुरुषकारेण_दुर्बलं_ह्युपहन्यते | #दैवेन_चेतरत्कर्म_प्रकृष्टेनोपहन्यते ||
अश्वत्थ का पुंसवन के लिए अथर्ववेद में दूसरे रूप में भी प्रयोग किया गया हैं --> #पुमान्_पुंसः_परिजातोऽश्वत्थः_खदिरादधि ||३/६/१||
खैर(जिससे कत्था बनता हैं) वृक्ष के ऊपर चढ़े हुए पीपल के सेवन से भी उसी प्रकार पुत्र उत्पन्न होता हैं | वैसे पीपल में वाजीकरण गुण तो होता ही हैं |
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री उमरेठ ||
अथर्ववेद में पुत्र ही उत्पन्न करनेवाले पुंसवन संस्कार का उल्लेख हुअा हैं | पुंसवन-संस्कार का साङ्गोपाङ्गविधान अपने अपने कुल से प्राप्त वेद-शाखा-सूत्रोंनुसार करना चाहिये औषधीवर्ग भी शाखासूत्रों में भिन्न भिन्नरूप से दिये हैं | पुंसवनौषधी किसी भी प्रकार की ग्रहण करें पर विधान स्ववेदशाखानुसार होना आवश्यक हैं | अथर्ववेद में पुंसवन के लिए जो औषधि उपभोग आती रही हैं उसमें अश्वत्थ(पीपल) के सम्बन्ध में कहा हैं ----> *#शमीमश्वत्थ_आरूढ़स्तत्र_पुंसवनं_कृतम् | #तद्वै_पुत्रस्य_वेदनं_तद्_स्त्रीष्वा_भरामसि ||६/११/१||
शमीवृक्ष(छोंकरा)पर उत्पन्न हुआ पीपल पुंसवन (पुत्रोत्पत्ति) करता हैं इसके लिए स्त्री को इसका स्ववेदविधान से सेवन करना चाहिए | विशेषरूप गर्भस्थिति के तीसरे महिने से लेकर सेवन करायें जबकि गर्भ में भ्रूण का लिंग बनता हैं | गर्भ स्थापना के दो महिने तक कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या लिंग होगा | गर्भाधान के पूर्व ही खिलाया जाय तो और भी अच्छा हैं पर पुंसवन-संस्कार के दूसरे वा तीसरे महिने में संस्कार करना अनिवार्य ही हैं, तीसरे महीने के बाद व्यर्थ हैं |
क्योंकि--- बलवान पुरुषार्थ देव को भी लांघ जाता हैं --> #बली_पुरुषकारो_हि_दैवमप्यतिवर्तते || अष्टाङ्ग हृ०||
तत्रैव चरकः --> बलवान कर्म दूसरे निर्बल कर्म को व्यर्थ कर देतें हैं ---> #देवं_पुरुषकारेण_दुर्बलं_ह्युपहन्यते | #दैवेन_चेतरत्कर्म_प्रकृष्टेनोपहन्यते ||
अश्वत्थ का पुंसवन के लिए अथर्ववेद में दूसरे रूप में भी प्रयोग किया गया हैं --> #पुमान्_पुंसः_परिजातोऽश्वत्थः_खदिरादधि ||३/६/१||
खैर(जिससे कत्था बनता हैं) वृक्ष के ऊपर चढ़े हुए पीपल के सेवन से भी उसी प्रकार पुत्र उत्पन्न होता हैं | वैसे पीपल में वाजीकरण गुण तो होता ही हैं |
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री उमरेठ ||
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