प्रथमरजोदर्शने_शुभाशुभम्

#प्रथमरजोदर्शने_शुभाशुभम्-

*( अमारिक्ताष्टमी षष्ठी द्वादशी प्रतिपत्स्वपि | परिघस्य तु पूर्वार्द्धे व्यतीपाते च वैधृतौ || संध्यासूपप्लवे विष्ट्यामशुभं प्रथमात्तर्वम् || रोगी पतिव्रता दुःखी पुत्रिणी भोगभागिनी | पतिव्रता क्लेशभागी सूर्यवारादिषु क्रमात् || वैधव्यं सुतलाभश्च मैत्रं शत्रुविवर्द्धनम् | मित्रलाभः शत्रुवृद्धिः कुलर्द्धिर्बन्धुनाशनम् || मरणं वंशवृद्धिश्च निराहारः कुलक्षयः | तेजश्च सुतनाशश्च कुलहानिस्तिथिक्रमात् || सम्मार्जनीकाष्ठतृणादि शूर्पान् हस्ते दधाना कुलटा तदा स्यात् | तल्पोपभोगे तपसि स्थिता चेद् दृष्टं रजो भाग्यवती तदा स्यात् || मदनरत्ने- नारदः ||)*

संतानप्राप्ति हेतु स्त्रीयों में गर्भाधान सक्षमता हेतु "रजोदर्शन" व्यवस्थित और समयपर होना आवश्यक हैं |  --->  नारदजी का कथन हैं कि अमावास्या, रिक्ता( चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी),अष्टमी, छठ, द्वादशी, प्रतिपदा, परिघ-योग का पूर्वार्द्ध, व्यतिपात, वैधृति, संध्यावेला तथा ग्रहण और भद्रा में यदि कन्या जन्म के बाद प्रथम समय रजोवती होती है तो अच्छा नहीं होता |
*सातवारों का फल*-- रविवार हो तो रोगिणी, सोमवार हो तो पतिव्रता, मंगलवार हो तो दुःखित, बुधवार हो तो पुत्रिणी, गुरुवार हो तो सुखी, शुक्रवार हो तो पतिव्रता और शनिवार हो तो क्लेशप्राप्ति होती हैं |
*तिथियों का फल*- प्रतिपदा से अमावस तक कुल  सोलह क्रम से -- (१) वैधव्य,(२)पुत्रलाभ,(३) मित्रता, (४)शत्रु वृद्धि,(५) मित्र लाभ,(६)शत्रु वृद्धि, (७)कुल वृद्धि,(८) बन्धुनाश,(९) मृत्यु समान पीड़ा ,(१०) कुलवृद्धि,(११)भोजन का अभाव,(१२) कुलक्षय,(१३)तेज,(१४)पुत्रनाश,(१५ तथा अमावस) को वंश की हानि होती हैं |
*रजोवती होने के समय*- झाडु़, काष्ठ, तृण, छाज(सूपड़ा) हाथ में लिए जो रजोवती होती हैं तो कुलटा तथा शय्या में अथवा तप में स्थित हो तो भाग्यवती होती हैं |

*( सुभगा चैव दुःशीला वन्ध्या पुत्रसमन्विता | धर्मयुक्ता व्रतघ्नी च परसंतानमोदिनी | सुपुत्रा चैव दुष्पुत्रा पितृवेश्मरता सदा | दीना प्रजावती चैव पुत्राढ्या चित्रकारिणी || साध्वी पतिप्रियं नित्यं सुपुत्रा कष्टचारिणी | स्वकर्मनिरता हिंस्रा पुण्यपुत्रादिसंयुता || नित्यं धनचयासक्ता पुत्रधान्यसमन्विता | मूर्खा चाज्ञा पुण्यवती दस्रर्क्षादेः क्रमात्फलम् ||कुलीरवृथचापान्त्य नृयुक्कन्यातुलाघटाः | राशयः शुभदा ज्ञेया नारीणां प्रथमार्तवे ||गर्गः||)*

गर्ग ऋषि जी कहतें हैं - अश्विनी आदि नक्षत्रों में प्रथमरजोदर्शन का फल क्रम से - (अ)- सुभगा, (भ)- दुःशीला, (कृ)- वंध्या, (रो)- पुत्रवती, (मृ)- धर्मयुक्त, (आर्द्रा)- व्रतघ्नी, (पुन०)- पराई संतान को प्रसन्नता देनेवाली, (पु)- शोभन पुत्रों वाली, (आ)- दुष्टपुत्रों वाली, (म)- पिता के घर में तत्परा, (पू-फा)- दुःखित, (उ-फा)- प्रजा और पुत्रों से युक्त, (ह)- चित्रकारिणी, (चि)- साध्वी, (स्वा)- पति को नित्यप्रिय, (वि)- शोभन पुत्रों वाली, (अनु)- कष्ट भोगने वाली, (ज्ये)- अपने कर्म में तत्पर, (मू)- हिंसाशील, (पू-षा)- श्रेष्ठ पुत्रों से युक्त, (उ-षा)- नित्य संचय करनेवाली, (श्र)- पुत्र और धान्य से युक्त, (ध)- मुर्ख, (शत)- अज्ञ, (पू-भा- उ-भा- रेवती)- पुण्यवती होती हैं | कर्क, वृषभ, धन, मीन, मिथुन, कन्या,तुला,कुम्भराशि के चन्द्रमावाले दिन में प्रथम रजोदर्शन शुभ हैं |

*( सुभगा श्वेतवस्त्रा स्याद्दृढवस्त्रा पतिव्रता | क्षौमवस्त्रा क्षितीशाव स्यान्न वस्त्रा  सुखान्विता | दुर्भगा जीर्णवस्त्रा स्याद्रोगिणी रक्तवाससा || नीलाम्बरधरा नारी पुष्पिता विधवा ततः | वस्त्रे स्युर्विषमा रक्तबिन्दवः पुत्रमाप्नुयात् || समाश्चेत्कन्यकाश्चेति फलं स्यात्प्रथमार्त्तवे || गर्गः ||)*

पुनः गर्ग जी कहतें हैं - *प्रथमरजोदर्शन वेला धारित वस्त्रों का शुभाशुभ*-- १श्वेत = सुभगा, २-दृढ(कसीले) = पतिव्रता, ३ क्षौम= भूस्वामिनी, ४ नवीन= सुखी, ५ फटे = दुर्भगा, ६ लाल = रोगिणी, ७= नीले = विधवा होती हैं  | अतः -
 *(#द्वादशे_तु_रजस्वला||नारद| देश ऋतु कालोद्भवशीततप्तविषम प्रकृतिवद्वा )* - --  नारद जी के वचन से सामान्य बारहवें वर्ष में कन्या प्रथमवार रजोवती होती हैं अथवा देश-ऋतु-काल से समुत्पन्न शीत,गरम, विषम प्रकृति के अनुसार ११ वर्ष के आगे पीछे (१०, ११,१२) के वर्षों में रजोदर्शन होना संभव बनता हैं इसलिए कन्याओं को इन्हीं वर्षों में श्वेत वस्त्रों ही धारण करवाना चाहिए |
फिर गर्ग जी कहतें हैं कि - प्रथम ऋतु में वस्त्र में रुधिर की बिन्दु यदि विषम (तीन पाँच सात आदि) पडैं तो पुत्र, सम अर्थात् (दो चार आदि) पडैं तो कन्या होती हैं |

*( आद्यर्तौ पौष शुक्रोर्जमधुशुचिनभस्याः कुयुक्पापवारा - रिक्ता मार्काष्टषष्ठ्यः पितृपरसदने रात्रिसन्ध्यापराह्णे | मिश्रोग्रा मूलतीक्ष्णं विवरमनरुणाल्पाधिकास्रं गराष्टोत्पातः पापस्य लग्नं न सदरुणजरन्नीलरक्ताम्बरं च || ---- आद्यर्तौ दुर्भगा नारी विष्कुम्भे चेद्रजस्वला | वन्ध्या चैवातिगण्डे च शूले शूलवती भवेत् || गण्डे तु पुँश्चली नारी व्याघाते चात्मघातिनी | वज्रे च स्वैरिणी प्रोक्ता पाते च पतिघातिनी || परिघे मृतवन्ध्या च वैधृतौ पतिमारिणी | शेषाः शुभावहा योगा यथानामफलप्रदाः || प्रभूतदोषे यदि दृश्यते तत्पुष्पं तदा शान्तिककर्म कार्यम् ||ज्योतिर्निबन्धे वसिष्ठः||)*

वसिष्ठ जी ने कहा हैं कि - प्रथम रजोदर्शन समय में ---- पौष, ज्येष्ठ, कार्तिक, चैत्र, आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन - इन मासों , पापवार(मंगल शनि) रिक्ता(४-९-१४) पर्व(अमावस पूर्णिमा एकादशी आदि) अष्टमी, षष्ठी यह तिथियों , रात्रि, सन्ध्या, अपराह्ण - इन कालों, माता पिता के जन्मतिथि , पराया घर, मिश्र, उग्र, तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र और विवर(क्षत) जिसमें लाली न हो ऐसा रुधिर, अल्प वा अधिक रुधिर, देश का उत्पात, पाप लग्न, नीला-लाल फटा हुआ वस्त्र ये उत्तम नहीं हैं |
(१) देश के उत्पात - दुर्भगा, (२) पाप लग्न - वन्ध्या, (३) लाल या नीला या फटे कपड़े- शूलवती, (४) विष्कुंभ-  पुश्चली(व्यभिचारिणी), (५) अतिगण्ड- आत्मघात करनेवाली, (६) शूलगण्ड - स्वैरिणी, (७)व्याघात- पति का घात करनेवाली, (८) वज्रपात- मृतवंध्या, (९) परिघ तथा वैधृति -  पतिमारिणी होती हैं |

दुष्टदोषों में रजोदर्शन हो तो #शांतिकर्म(#भुवनेश्वरी_शांति) करना चाहिए |
दुष्ट योगों में कहीं न कहीं संतानसमस्या बनती ही हैं इसलिए गर्भाधान(संतति प्राप्ति निमित्तक पत्नीसंयोग) से पहिले (शुभ हो या अशुभ समय में ऋतुवती हो , यह वर्तमान में ऐसे समय निश्चित नहीं पाने की बजह से गर्भधारण-सक्षमता हेतु प्रसन्नता से #भुवनेश्वरी_शांति करवाना अनिवार्य समजें |

@१-- नारदोक्ता भुवनेश्वरी शांतिः

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=808609989249893&id=743732335737659

@२- शौनकोक्ता भुवनेश्वरी शांतिः -

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1772260746337946&id=100006621126470

(दो में से किसी एक विधानानुसार )
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#प्रथमरजोदर्शन-
कन्या जब प्रथम समय रजोवती होती हैं  तब -- *( प्रथमर्तौ तु पुष्पिण्याः पतिपुत्रवतीस्त्रियाः | अक्षतैरासनं कृत्वा तस्मिंस्तामुपवेशयेत् || हरिद्रागन्धपुष्पादीन्दद्युस्ताम्बूलकं स्रजम् | दीपैर्नीराजनं कुर्यात्सदीपे वासयेद्गृहे || लवणापूपमुद्गादि दद्यात्ताभ्यः स्वशक्तितः ||स्मृति चन्द्रिकायां ||)*

रजस्वला को पति और पुत्रवाली स्त्रीयाँ मिलकर अक्षतों का आसन निर्माणकर उसे उसपर बीठायैं, हलदी, गन्ध, पुष्प, पान , माला, इनको दे - दीपकों से आरती करें, इस प्रकार घर में सुलावै, जिस घर में दीपक जलता रहैं, कन्या के पति या सास (#कन्याकाल_विवाह पर सरकार के हस्तक्षेप के कारण वर्तमान में कन्या का पिता या माता) उन स्त्रियों को अपनी शक्ति अनुसार लवण, मूँग, पुए आदि देना चाहिए |
*(द्वितीयाद्यृतुषु तन्नियमान् पालयेत् || धर्माचारः ||)*
दूसरी ऋतु आदि में रजस्वला और उनके सम्पर्क में रहने वालों को #नियम का पालन करना और करवाना चाहिए |

रजस्वलाधर्म २ 👉 https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2009614999269185&id=100006621126470

ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री, उमरेठ || शेष पुनः

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