शुभ संतान प्राप्तिका शास्त्रीय उपाय
शुभ संतान प्राप्तिका शास्त्रीय उपाय~
शङ्का-वर्तमानमें अशुभ संतानें बहुत उत्पन्न हो रही हैं,जिससे व्यक्ति,परिवार और समाज़में सर्वत्र अशान्ति व्याप्त हो रही हैं,इसका कारण क्या हैं? इससे बचकर शुभ संतानकी प्राप्तिका यदि कोई उपाय हैं तो वह क्या हैं?
समाधान~
अशुभ विवाह ,अशुभरितिसे गर्भाधान, अशुभ खान पान,अशुभ शिक्षा दीक्षा आदि कारणोंसे अशुभ संतानें उत्पन्न होतीं हैं.
इससे बचकर शुभ संतान उत्पन्न करनेका उपाय हैं कि शास्त्रीय विधिसे शुभ विवाह,शुभविधिसे गर्भाधान, शुभ खान पान और शुभ शिक्षा दीक्षा"इन्हींका यहाँ संक्षेपमें विवेचन किया जा रहा हैं....
असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः||सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने||सवर्णाग्रे द्विजातीनां प्रशस्ता दारकर्मणि||अनिन्दितैः स्त्रीविवाहैरनिन्द्या भवति प्रजा||निन्दितैर्निन्दिता नॄणां तस्मान्निद्यान् विवर्जयेत्||मनुस्मृतिः३/५/१२,४२||
मनुस्मृतिमें कहा हैं कि जो अपने माता-पिता के समान गोत्र तथा पिण्डवाली(सातपैढीतक)की न हों ऐसी कन्या विवाह और गर्भाधानमें द्विजातियोंके लिये श्रेष्ठ होती हैं.द्विजातियोंके लिये अपनी जातिकी कन्या (शास्त्र विधिसे माता-पिताद्वारा किये गयें)विवाहके लिये श्रेष्ठ होती हैं.अनिन्दित विवाहोंसे अनिन्दित संतान होतीं हैं तथा (प्रेम विवाह आदि)निन्दित विवाहोंसे निन्दित संतान होती हैं.इसलिये निन्द्य विवाहोंका त्याग कर देना चाहिये.
शुभ भावनासे गर्भाधान- यादृशेन हि भावेन योनौ शुक्रं समुत्सृजेत्||तादृशेन हि भावेन संतानं सम्भवेदिति||नारदपु°२/२७२/२९/३०||
जिस भावसे योनिमें वीर्य डाला जाता हैं,उसी भावसे युक्त संतान होती हैं.इसलिये मनुष्यको गर्भाधान करतें समय जैसे पुत्रकी इच्छा हो,वैसे शुभ भावसे युक्त होना चाहिये और चरमसीमाके अंततक शुभविचारोंसे युक्त रहना चाहियें क्योंकि महत्व शुक्र सेचनका हैं...
ॐस्वस्ति||पु ह शास्त्री||उमरेठ||
शङ्का-वर्तमानमें अशुभ संतानें बहुत उत्पन्न हो रही हैं,जिससे व्यक्ति,परिवार और समाज़में सर्वत्र अशान्ति व्याप्त हो रही हैं,इसका कारण क्या हैं? इससे बचकर शुभ संतानकी प्राप्तिका यदि कोई उपाय हैं तो वह क्या हैं?
समाधान~
अशुभ विवाह ,अशुभरितिसे गर्भाधान, अशुभ खान पान,अशुभ शिक्षा दीक्षा आदि कारणोंसे अशुभ संतानें उत्पन्न होतीं हैं.
इससे बचकर शुभ संतान उत्पन्न करनेका उपाय हैं कि शास्त्रीय विधिसे शुभ विवाह,शुभविधिसे गर्भाधान, शुभ खान पान और शुभ शिक्षा दीक्षा"इन्हींका यहाँ संक्षेपमें विवेचन किया जा रहा हैं....
असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः||सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने||सवर्णाग्रे द्विजातीनां प्रशस्ता दारकर्मणि||अनिन्दितैः स्त्रीविवाहैरनिन्द्या भवति प्रजा||निन्दितैर्निन्दिता नॄणां तस्मान्निद्यान् विवर्जयेत्||मनुस्मृतिः३/५/१२,४२||
मनुस्मृतिमें कहा हैं कि जो अपने माता-पिता के समान गोत्र तथा पिण्डवाली(सातपैढीतक)की न हों ऐसी कन्या विवाह और गर्भाधानमें द्विजातियोंके लिये श्रेष्ठ होती हैं.द्विजातियोंके लिये अपनी जातिकी कन्या (शास्त्र विधिसे माता-पिताद्वारा किये गयें)विवाहके लिये श्रेष्ठ होती हैं.अनिन्दित विवाहोंसे अनिन्दित संतान होतीं हैं तथा (प्रेम विवाह आदि)निन्दित विवाहोंसे निन्दित संतान होती हैं.इसलिये निन्द्य विवाहोंका त्याग कर देना चाहिये.
शुभ भावनासे गर्भाधान- यादृशेन हि भावेन योनौ शुक्रं समुत्सृजेत्||तादृशेन हि भावेन संतानं सम्भवेदिति||नारदपु°२/२७२/२९/३०||
जिस भावसे योनिमें वीर्य डाला जाता हैं,उसी भावसे युक्त संतान होती हैं.इसलिये मनुष्यको गर्भाधान करतें समय जैसे पुत्रकी इच्छा हो,वैसे शुभ भावसे युक्त होना चाहिये और चरमसीमाके अंततक शुभविचारोंसे युक्त रहना चाहियें क्योंकि महत्व शुक्र सेचनका हैं...
ॐस्वस्ति||पु ह शास्त्री||उमरेठ||
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