रजस्वला_धर्म_विशेष=३

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*#प्रारब्धदीर्घतपसां_नारीणां_यद्रजो_भवेत् | #न_तत्रापि_व्रतस्य_स्यादुपरोधः_कथंचन ||सत्यव्रत ||* (तत्प्रतिनिधिना कारयेदित्येतत्परम् )|
दीर्घव्रत के प्रारम्भ में यदि स्त्री रजोवती हो जाय तो उसका व्रत नहीं रुक सकता, प्रतिनिधि से करवा देना चाहिये |  #प्रतिनिधयः--> *( भार्या पत्युर्व्रतं कुर्याद्भार्यायाश्च पतिर्व्रतम् | असामर्थ्ये परस्ताभ्यां व्रतभङ्गो न जायते || निर्णयामृत || पुत्रं वा विनयोपेतं भगिनीं भ्रातरं तथा | एषामभाव एवान्यं ब्राह्मणं वा नियोजयेत् ||स्कन्दपु०|| पितृमातृभ्रातृपतिगुर्वर्थे च विशेषतः | उपवासं प्रकुर्वाणः पुण्यं शतगुणं भवेत् || मातामहादीनुद्दिश्य एकादश्यामुपोषणे || कृते ते फलं विप्रा समग्रं समवाप्नुयुः || कात्यायनः || भर्त्ता पुत्रः पुरोधाश्च भ्राता पत्नी सखापि च | यात्रायां धर्मकार्येषु जायन्ते प्रतिहस्तिकाः || एभिः कृतं महादेवि ! स्वयमेव कृतं भवेत् || प्रभासखण्ड ||)*
भार्या पतिका और पति - भार्या का व्रत कर दें | इनके सामर्थ्य न हो तो दूसरे प्रतिनिधि से व्रत करवाने में व्रत भंग नहीं होता | पुत्र, बहन, भ्राता इनको अथवा इनके अभाव में ब्राह्मण को प्रतिनिधि करना चाहिये | पिता,माता,भ्राता, पति और विशेष गुरु के निमित्त उपवास करने से सौगुना पुण्य होता हैं | मातामहादि(मातामह्यादि) के उद्देश्य से एकादशी में उपवास करने से समग्र फल की प्राप्ति होती हैं | भर्ता, पुत्र, पुरोहित, भ्राता, पत्नी, सखा, यात्रा और धर्मकार्य में प्रतिनिधि होते हैं इनका किया हुआ स्वयं ही किया हुआ हैं |  *( संकटे समनुप्राप्ते सूतके समुपागते | कूष्माण्डाभिर्घृतं हुत्वा गां च दद्यात्पयस्विनीम् || चूडोपनयनोद्वाहप्रतिष्ठादिकमाचरेत् || संग्रहे ||)*
सुतक(द्वय) आदि संकट हो जाय तो कूष्मांड-संज्ञक मंत्रो से (वीट्) नामक अग्नि में घृत का होम कर दूधदेनेवाली-स्वस्थ गौ का दान ( गौ दान के बदले में प्रत्याम्नाय निष्क्रयीद्रव्य दे) | फिर चूडा, यज्ञोपवीत, विवाह, प्रतिष्ठा आदि करें | रजोवती  तीन दिन केवल दुग्धप्राशन करकें उपवास करे..|
*( अलाभे सुमुर्हूतस्य रजोदोषे ह्युपस्थिते | श्रियं संपूज्य विधिवत्ततो मङ्गलमाचरेत् ||वाक्यसार ||)* --
यदि मांगलिक कार्यों में  रजोदोष निमित्त बन जाय और मुर्हूत के अलाभ में *श्री(महालक्ष्मी)* का विधिवत् पूजन(पूजन तथा घृतेन-पूजनाङ्गहोम- तीन दिन केवल दुग्धप्राशन से उपवास ) आदि करने के बाद मंगल कार्य करें |
*( विवाहे वितते यज्ञे संस्कारे च कृते यदा | कन्यामृतुमतीं दृष्ट्वा कथं कुर्वंति याज्ञिकाः ? || स्नापयित्वा तु तां कन्यामर्चयित्वा यथाविधि | युंजानामाहुतिं हुत्वा ततस्तंत्रं प्रवर्तयेत् ||बालबोधे निर्णय सिं०वचन )*
विवाह अथवा यज्ञ चालू हो और होमसमय प्राप्त हो गया हो, यदि उस समय कन्या को रजोदर्शन होता हैं तो कर्मकाण्डियों(ब्राह्मणों) को क्या करना चाहिये ? -- उत्तर रजोवती कन्या को स्नान कराकर यथाविधि-पूजन( पवित्रीकरण, आचमन, प्राणायाम, स्वहस्तेन तिलककरण और गणपति स्मरण पूर्वक संकल्प)करके (ब्राह्मण द्वारा) युंजा के मंत्र ( युंजाहोम विधान) से होम करके रुका हुआ बाकी कर्म करना चाहिये, इस विधान में भी रजोवती को तीन दिन केवल दुग्धानुपान कर उपवास करना हैं |
*ज्ञातव्यः----> हमारे पुरखों मंगलकार्य के निमित्त ही - इन विधि पूर्वक शास्त्रमर्यादा  में रहकर "उपवास" के नियम से केवल दुग्धानुपान पर रहकर तीन दिन उपवास करवातें थे"===== बिना मंगलकार्य के नहीं;कोई मंगल-कार्य ही न हो और  रजोदर्शन होता हैं तो इनके सम्पूर्ण नियमों का पालन ही शास्त्राज्ञा हैं |
यही भगवान् की आज्ञा हैं - *#श्रुतिस्मृती ममैवाज्ञे ||*
रागद्वेष से युक्त लोग शास्त्र के अर्थ को भी उलटा मान लेतें हैं -->
*#तत्र_रागद्वेषप्रयुक्तो_मन्यते_शास्त्रार्थम् #अपि_अन्यथा  ||गीता शांकरभाष्य||*

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