द्विजस्त्री प्रसूता भक्ष्य अभक्ष्य प्रायश्चित
यदि किसी द्विजस्त्री प्रसूता हैं और भूल से द्विजत्वभ्रष्ट सूचक अभक्ष्य पदार्थ-( लहसुन,गाजर,बीट=सलगम, प्याज, मशरुम) आदि का सेवन करले तो जबतक नवजात-शिशु अपनी माता का स्तनपान करता हैं तबतक प्रतिदिन गौमूत्र सेवन करें तथा अपने स्तनोंपर गौमूत्र लगाकर स्तनपान करायें और प्रायश्चित्त प्रतिनिधि पतिद्वारा आचरण करें, या शिशु के स्तनपान छुटने के बाद स्त्री ही प्रायश्चित्त करें -- #तप्तार्धकृच्छ्र प्रायश्चित्त |
क्षत्रिया के लिए पादतप्तकृच्छ्र / वैश्यस्त्री के लिए भी पादतप्तकृच्छ्र |
आयुर्वेद के ग्रन्थ काश्यपसंहिता के कौमारभृत्य में बालक को दवाई सेवन करवाने की पद्धति में एक दवाई का स्तनपर लेप कर - स्तनपान के साथ दवाई का सेवन संतान को करवा सकती हैं यहाँ द्विजस्त्री और नवजात-द्विजशिशु के प्राणकोषों की शुद्धि अनिवार्य हैं |
भूल से पाप का मूल(कहा हुआ) बुद्धिपूर्वक ( जानबूझकर) किये पाप का दोगुना, वारंवार जानबूझ कर करनेपर चारगुणा प्रायश्चित्त जाने..
यथा जानबूझ कर सेवन करने में #तप्तकृच्छ्र वा #चान्द्रायण वारंवार अभ्यासे #दोतप्तकृच्छ्र या #दोचान्द्रायण...
जानबूझ कर - क्षत्रिया के लिए तप्तार्द्धकृच्छ्र/ वैश्यास्त्री के लिए पादतप्तकृच्छ्र |
वारंवार जानबूझ कर - क्षत्रिया के लिए तप्तकृच्छ्र अथवा चान्द्रायण / वैश्यास्त्री के लिए पादोनतप्तकृच्छ्र |
#अज्ञानाकामकृते यदुक्तं [ज्ञान]#कामकृतेतद्विगुणं #कामतोऽभ्यासे चतुर्गुणं प्रायश्चित्तम् || प्रायश्चित्तेन्दुशेखर ||
#प्रायश्चित्तकरणे_अवधिः-
द्विजत्वभ्रष्ट सूचक पदार्थ ( लहसुन, प्याज,गाजर,सलगम=,बीट ) आदि के सेवन या किसी भी पाप का ज्ञात होनेपर जो कपड़े पहने हैं वही पहनेहुए-कपड़े ठंडे जल से स्नान कर मौन होते हुए पाप निवारणार्थ प्रायश्चित्त कहने वाले पंडित के पास जाकर प्रणाम करतें हुए जिस प्रकार जैसे पाप हुआ हो वह स्पष्ट कहें कि "मैने ऐसे अमुकामुक" पाप किएँ हैं मुझे पश्चाताप हो रहा हैं , में कृतपाप फिरसे नहीं करूँगा... यथा शास्त्रोचित प्रायश्चित्त का कथन करें-- पाप ज्ञात होते हुए भी शास्त्रोचित प्रायश्चित्त कथन करने वाले विद्वान की सभा में उपस्थित नहीं होता और भोजन करता हैं या बातें करता रहता हैं तो #कृतपापों की वृद्धि होगीं | एकवर्ष में प्रायश्चित्त न किया जाय तो पाप का दोगुना प्रायश्चित्त विधान हैं | प्रायश्चित्तेन्दु शेखर ||
हमारे लेख पढ़नेवाले द्विजों को लेख माध्यम मात्र से ही ज्ञात हो ही चूका हैं -- प्रायश्चित्ताधिकारीयों प्रायश्चित्त प्रारंभ कर दें... अष्टमी और चतुर्दशी प्रायश्चित्त में त्याज्य हैं-- इन तिथियों में किए हुए प्रायश्चित्त दोगुने होते हैं |
उपर.. कहे पाप का #तप्तकृच्छ्र वा #चान्द्रायण प्रायश्चित्त विधान हैं.. || सन्दर्भोयं प्रायश्चित्तेन्दु शेखरः ||
क्षत्रिया के लिए पादतप्तकृच्छ्र / वैश्यस्त्री के लिए भी पादतप्तकृच्छ्र |
आयुर्वेद के ग्रन्थ काश्यपसंहिता के कौमारभृत्य में बालक को दवाई सेवन करवाने की पद्धति में एक दवाई का स्तनपर लेप कर - स्तनपान के साथ दवाई का सेवन संतान को करवा सकती हैं यहाँ द्विजस्त्री और नवजात-द्विजशिशु के प्राणकोषों की शुद्धि अनिवार्य हैं |
भूल से पाप का मूल(कहा हुआ) बुद्धिपूर्वक ( जानबूझकर) किये पाप का दोगुना, वारंवार जानबूझ कर करनेपर चारगुणा प्रायश्चित्त जाने..
यथा जानबूझ कर सेवन करने में #तप्तकृच्छ्र वा #चान्द्रायण वारंवार अभ्यासे #दोतप्तकृच्छ्र या #दोचान्द्रायण...
जानबूझ कर - क्षत्रिया के लिए तप्तार्द्धकृच्छ्र/ वैश्यास्त्री के लिए पादतप्तकृच्छ्र |
वारंवार जानबूझ कर - क्षत्रिया के लिए तप्तकृच्छ्र अथवा चान्द्रायण / वैश्यास्त्री के लिए पादोनतप्तकृच्छ्र |
#अज्ञानाकामकृते यदुक्तं [ज्ञान]#कामकृतेतद्विगुणं #कामतोऽभ्यासे चतुर्गुणं प्रायश्चित्तम् || प्रायश्चित्तेन्दुशेखर ||
#प्रायश्चित्तकरणे_अवधिः-
द्विजत्वभ्रष्ट सूचक पदार्थ ( लहसुन, प्याज,गाजर,सलगम=,बीट ) आदि के सेवन या किसी भी पाप का ज्ञात होनेपर जो कपड़े पहने हैं वही पहनेहुए-कपड़े ठंडे जल से स्नान कर मौन होते हुए पाप निवारणार्थ प्रायश्चित्त कहने वाले पंडित के पास जाकर प्रणाम करतें हुए जिस प्रकार जैसे पाप हुआ हो वह स्पष्ट कहें कि "मैने ऐसे अमुकामुक" पाप किएँ हैं मुझे पश्चाताप हो रहा हैं , में कृतपाप फिरसे नहीं करूँगा... यथा शास्त्रोचित प्रायश्चित्त का कथन करें-- पाप ज्ञात होते हुए भी शास्त्रोचित प्रायश्चित्त कथन करने वाले विद्वान की सभा में उपस्थित नहीं होता और भोजन करता हैं या बातें करता रहता हैं तो #कृतपापों की वृद्धि होगीं | एकवर्ष में प्रायश्चित्त न किया जाय तो पाप का दोगुना प्रायश्चित्त विधान हैं | प्रायश्चित्तेन्दु शेखर ||
हमारे लेख पढ़नेवाले द्विजों को लेख माध्यम मात्र से ही ज्ञात हो ही चूका हैं -- प्रायश्चित्ताधिकारीयों प्रायश्चित्त प्रारंभ कर दें... अष्टमी और चतुर्दशी प्रायश्चित्त में त्याज्य हैं-- इन तिथियों में किए हुए प्रायश्चित्त दोगुने होते हैं |
उपर.. कहे पाप का #तप्तकृच्छ्र वा #चान्द्रायण प्रायश्चित्त विधान हैं.. || सन्दर्भोयं प्रायश्चित्तेन्दु शेखरः ||
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