प्रसव उपाय
षोडश संस्कारा:खंड५३~ प्रसव उपाय* आजके नवयुगमें आयुर्वेदसे विपरित जनमानस होकर मेडिकल उपाय और मूढगर्भ(उलटा या तिरछा) सुखप्रसव न होनेपर शस्त्रक्रिया(ऑपरेशन) करवातें हैं. परंतु ऐसी वैदिक प्रक्रीया हैं जिससे जरुरीयातमंदोको भी लाभ मिल सकता हैं--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दशमूलाश्रृतं तोयं घृतसैन्धव संयुतम्|| शूलातुरापिबेन्नारी सा सुखेन प्रसूयते|| दशमूलका काढा़ और सेंधानमक को गायके घीमें मिलाकर कुलयोग ४० ग्राम पीलानेसे सुखपूर्वक(पीडा़रहित) प्रसव होता हैं.
मातुलिंगामधूकोत्थं चूर्णं मधुघृतांकितम्|| पीत्वासूते सुखं नारी शीघ्रमेव न संशयः||
बिजौरा और महुआ के चूर्णको सममात्रामे लेकर विषममात्रामें घी तथा शहदमें मिलाकर सेवन करानेसे सुखप्रसव होता हैं.
गृहधूम्रं समादाय पिवेत्पयुपिताम्भसा|| या सा सूते सुखेनैव शीघ्रमेव न संशयः||
धूपआदिका धुआँ मुंहमें भरकर,बासी पानी पीनेसे भी बच्चा शीघ्र पैदा होता हैं.
ॐमन्मथः ॐमन्मथः ॐमन्मथः ॐमन्मथः वाहिनी लंबोदर मुंच मुंच स्वाहा" अनेन मंत्रेण जलंसुतप्तं पातु प्रदेयं शुचिता नरेण| तोयाभिपान त्खलु गर्भवत्या प्रसूयते शीघ्रतरं सुखेम्||
ॐमन्मथः००० इस मंत्रसे जलको १०८ जपसे अभिमंत्रित करके गर्भवती स्त्रीको पिलानेसे प्रसव कष्ट नष्ट होकर सुखपूर्वक प्रसव होता हैं.
रविवारे गृहीतस्य गुंजामूलस्य बंधनात्|| नीलसूत्रैः कटोमूर्ध्नि जायते प्रसवो ध्रुवम्||
किसी भी रविवारके दिन गुंजा(चनौठी) की जड़को लाकर नीले डोरेमें स्त्रीकी कमरमें बाँधनेसे सुखप्रसव होता हैं. परंतु प्रसवके बाद तुरंत सावधानीसे यह जडी़ निकालदैनी चाहिये.
श्वेतपुनर्नवामूलं चूर्णं योनौ प्रवेशयेत्|| क्षणात् प्रसूयते नारी गर्भेणाति प्रतीडिते|| सफेद पुनर्नवाके जड़का चूर्ण करके योनीमें रखनेसे तत्काल सुखपूर्वक प्रसव होता हैं.
वासकस्य तु मूलंतु चोत्तरस्थं समुद्धरेत्|| कट्यां बध्वा सप्तसूत्रैः सुखं नारी प्रसूयते||
वासक (जैनोमें विशेष रूपसे पूजामें वासः प्रक्षेप होता हैं वह) के पौधे की उत्तरदिशामें जानेवाली जड़को उखाडकर सातसूतों द्वारा गर्भिणी स्त्रीकी कमरमें बांधनेसे सुखपूर्वक प्रसव होता हैं. यह जड़ भी प्रसवकेबाद तुरंत हटा देनी चाहिये.
उत्तराभिमुखं ग्राह्यं श्वेतगुंजीय मूलकम्|| कट्यां बध्वा विमुक्तं च गर्भं पुत्रंतु तत्क्षणात् ||
उत्तकी ओर मुखकरके श्वेतगुंजाकी जड़ उखाड लाएं और गर्भिणी की कमरमें सूतसे बाँध देनेसे तत्काल सुखप्रसव होता हैं.
ॐ मन्मथ मथ मथ वालाहि बालस्योदरं सुत्र सुंच लघु स्वाहा" इति मंत्रेण संजप्त पातुं देयं जलं बुधैः|| स तेन्गना सुखं शीघ्रं मंत्रराज प्रसादतः||
ॐमन्मथ०० वाला मंत्र कों २९ वार जप करके उससे जलको १०८ जप करके अभिमंत्रित करैं. यह जल पिलानेसे मंत्रप्रभावसे स्त्रीको शीघ्र प्रसव होता हैं.
समातुलुंगं मधूकस्य चूर्णं मध्वाज्यमिश्रं प्रमदा निपीय||,व्यथा विहीनं प्रसवं हठेन प्राप्नोति नैवात्र विकल्पबुद्धिः||
बीजौरेकी जड़ और यष्टिमधु(मुलहठी) का चूर्ण करके उसमें घी और शहद मिलाकर सेवन करनेसे गर्भिणी स्त्रीको सुख प्रसव होता हैं.
मातुलुंगस्य मूलं योज्यं न तु फलं क्वाथयेद्धा पेयम्|||
बीजौरेकी जड़का काढा घी और शहद पिलानेसे सुखप्रसव होता हैं.
ॐअं हां नमस्त्रिमूर्त्तये||अनेनैव मंत्रेण जप्तव्यं सूतिका गृहे||सुखप्रसव मवाप्नोति सा पुत्रं लभते ध्रुवम्|| सूतिकागृहमें बैठकर इस मंत्रके प्रसवकालतक जपकरने से गर्भिणी को सुखपूर्वक होता हैं.
उत्तरे च समालोड्य श्वेतगुंजा फलीयकम्|| सुखप्रसव मवाप्नोति तत्क्षणान्नात्र संशयः|| श्वेतगुंजाकी झाडी की उत्तर दिशामें लगी गुंजाफल लेकर सूतसे गर्भिणी स्त्रीके बालोंमें बाँघनेसे प्रसव सुखपूर्वक होता हैं.
योनिं वा लेपयेत्तेन सा सुखेन प्रसूयते|| उसी गुंजाको पीसकर गर्भिणी स्त्रीकी योनीमें लेप करनेसे भी सुख प्रसव होता हैं.
सहदेवश्च मूलंतु कटिस्थ प्रसवेत् सुखम्||
सहदेवीकी जड़ को कमरमें सूतसे बाँध देनेसे शीघ्र सुखद प्रसव होता हैं. यह जड़ीभी प्रसवके बाद निकाल दैं.
अपामार्गस्य मूलं तु ग्राह्येच्चतुरंगुलम्|| नारीप्रवेशयेद्योनौ तत्क्षणात्सा प्रसूयते||
अपामार्गकी चारअंगुल की जड़ लाकर गर्भिणी स्त्रीकी योनिंमें प्रविष्ट करानेसे तत्काल प्रसव होता हैं.
गुंजातरोर्मूलयुगं विधानाद्दुत्पाट्य पुष्ये च रवौ निबद्धम्|| कटितटे मूर्ध्नि नीलसूत्रैः शीघ्रं प्रसूतिं कुरुतेऽन्गनायाः||
रविपुष्ययोगमें गुंजाफल के पौधेकी दो जड़ लाकर नीले सूतमें एकको कमरमें तथा दूसरी को सिरपर बाँधनेसे तत्काल प्रसव होता हैं.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ.
दशमूलाश्रृतं तोयं घृतसैन्धव संयुतम्|| शूलातुरापिबेन्नारी सा सुखेन प्रसूयते|| दशमूलका काढा़ और सेंधानमक को गायके घीमें मिलाकर कुलयोग ४० ग्राम पीलानेसे सुखपूर्वक(पीडा़रहित) प्रसव होता हैं.
मातुलिंगामधूकोत्थं चूर्णं मधुघृतांकितम्|| पीत्वासूते सुखं नारी शीघ्रमेव न संशयः||
बिजौरा और महुआ के चूर्णको सममात्रामे लेकर विषममात्रामें घी तथा शहदमें मिलाकर सेवन करानेसे सुखप्रसव होता हैं.
गृहधूम्रं समादाय पिवेत्पयुपिताम्भसा|| या सा सूते सुखेनैव शीघ्रमेव न संशयः||
धूपआदिका धुआँ मुंहमें भरकर,बासी पानी पीनेसे भी बच्चा शीघ्र पैदा होता हैं.
ॐमन्मथः ॐमन्मथः ॐमन्मथः ॐमन्मथः वाहिनी लंबोदर मुंच मुंच स्वाहा" अनेन मंत्रेण जलंसुतप्तं पातु प्रदेयं शुचिता नरेण| तोयाभिपान त्खलु गर्भवत्या प्रसूयते शीघ्रतरं सुखेम्||
ॐमन्मथः००० इस मंत्रसे जलको १०८ जपसे अभिमंत्रित करके गर्भवती स्त्रीको पिलानेसे प्रसव कष्ट नष्ट होकर सुखपूर्वक प्रसव होता हैं.
रविवारे गृहीतस्य गुंजामूलस्य बंधनात्|| नीलसूत्रैः कटोमूर्ध्नि जायते प्रसवो ध्रुवम्||
किसी भी रविवारके दिन गुंजा(चनौठी) की जड़को लाकर नीले डोरेमें स्त्रीकी कमरमें बाँधनेसे सुखप्रसव होता हैं. परंतु प्रसवके बाद तुरंत सावधानीसे यह जडी़ निकालदैनी चाहिये.
श्वेतपुनर्नवामूलं चूर्णं योनौ प्रवेशयेत्|| क्षणात् प्रसूयते नारी गर्भेणाति प्रतीडिते|| सफेद पुनर्नवाके जड़का चूर्ण करके योनीमें रखनेसे तत्काल सुखपूर्वक प्रसव होता हैं.
वासकस्य तु मूलंतु चोत्तरस्थं समुद्धरेत्|| कट्यां बध्वा सप्तसूत्रैः सुखं नारी प्रसूयते||
वासक (जैनोमें विशेष रूपसे पूजामें वासः प्रक्षेप होता हैं वह) के पौधे की उत्तरदिशामें जानेवाली जड़को उखाडकर सातसूतों द्वारा गर्भिणी स्त्रीकी कमरमें बांधनेसे सुखपूर्वक प्रसव होता हैं. यह जड़ भी प्रसवकेबाद तुरंत हटा देनी चाहिये.
उत्तराभिमुखं ग्राह्यं श्वेतगुंजीय मूलकम्|| कट्यां बध्वा विमुक्तं च गर्भं पुत्रंतु तत्क्षणात् ||
उत्तकी ओर मुखकरके श्वेतगुंजाकी जड़ उखाड लाएं और गर्भिणी की कमरमें सूतसे बाँध देनेसे तत्काल सुखप्रसव होता हैं.
ॐ मन्मथ मथ मथ वालाहि बालस्योदरं सुत्र सुंच लघु स्वाहा" इति मंत्रेण संजप्त पातुं देयं जलं बुधैः|| स तेन्गना सुखं शीघ्रं मंत्रराज प्रसादतः||
ॐमन्मथ०० वाला मंत्र कों २९ वार जप करके उससे जलको १०८ जप करके अभिमंत्रित करैं. यह जल पिलानेसे मंत्रप्रभावसे स्त्रीको शीघ्र प्रसव होता हैं.
समातुलुंगं मधूकस्य चूर्णं मध्वाज्यमिश्रं प्रमदा निपीय||,व्यथा विहीनं प्रसवं हठेन प्राप्नोति नैवात्र विकल्पबुद्धिः||
बीजौरेकी जड़ और यष्टिमधु(मुलहठी) का चूर्ण करके उसमें घी और शहद मिलाकर सेवन करनेसे गर्भिणी स्त्रीको सुख प्रसव होता हैं.
मातुलुंगस्य मूलं योज्यं न तु फलं क्वाथयेद्धा पेयम्|||
बीजौरेकी जड़का काढा घी और शहद पिलानेसे सुखप्रसव होता हैं.
ॐअं हां नमस्त्रिमूर्त्तये||अनेनैव मंत्रेण जप्तव्यं सूतिका गृहे||सुखप्रसव मवाप्नोति सा पुत्रं लभते ध्रुवम्|| सूतिकागृहमें बैठकर इस मंत्रके प्रसवकालतक जपकरने से गर्भिणी को सुखपूर्वक होता हैं.
उत्तरे च समालोड्य श्वेतगुंजा फलीयकम्|| सुखप्रसव मवाप्नोति तत्क्षणान्नात्र संशयः|| श्वेतगुंजाकी झाडी की उत्तर दिशामें लगी गुंजाफल लेकर सूतसे गर्भिणी स्त्रीके बालोंमें बाँघनेसे प्रसव सुखपूर्वक होता हैं.
योनिं वा लेपयेत्तेन सा सुखेन प्रसूयते|| उसी गुंजाको पीसकर गर्भिणी स्त्रीकी योनीमें लेप करनेसे भी सुख प्रसव होता हैं.
सहदेवश्च मूलंतु कटिस्थ प्रसवेत् सुखम्||
सहदेवीकी जड़ को कमरमें सूतसे बाँध देनेसे शीघ्र सुखद प्रसव होता हैं. यह जड़ीभी प्रसवके बाद निकाल दैं.
अपामार्गस्य मूलं तु ग्राह्येच्चतुरंगुलम्|| नारीप्रवेशयेद्योनौ तत्क्षणात्सा प्रसूयते||
अपामार्गकी चारअंगुल की जड़ लाकर गर्भिणी स्त्रीकी योनिंमें प्रविष्ट करानेसे तत्काल प्रसव होता हैं.
गुंजातरोर्मूलयुगं विधानाद्दुत्पाट्य पुष्ये च रवौ निबद्धम्|| कटितटे मूर्ध्नि नीलसूत्रैः शीघ्रं प्रसूतिं कुरुतेऽन्गनायाः||
रविपुष्ययोगमें गुंजाफल के पौधेकी दो जड़ लाकर नीले सूतमें एकको कमरमें तथा दूसरी को सिरपर बाँधनेसे तत्काल प्रसव होता हैं.
ॐस्वस्ति|| पु ह शास्त्री.उमरेठ.
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