माता का दूध

#माता_का_दूध=-}---> नवजात शिशु का प्रारम्भिक आहार माता का दूध हैं | प्रकृति ने बच्चों के लिये दूध का विधान किया हैं | सभी जानवर - शेर,चीता,भेड़िया आदि हिंसक पशु अपने बच्चों को अपना ही दूध पिलाते हैं | लेकिन मनुष्यजाति में इस प्राकृतिक विधान का उल्लंघन होते देखा जा रहा हैं | सामान्यतः माताएँ अपने बच्चों को अपना दूध पिलाकर, वे अपना बोझ धायपर छोड़कर निश्चिन्त हो जाती हैं | यह कृत्य अप्राकृतिक होकर हानिप्रद हैं | हाँ यह बात निःसंकोच स्वीकार की जा सकती हैं कि यदि वह माता कमजोर हो, अस्वस्थ हो या उसका दूध बच्चे के लिये पर्याप्त न हो तो ऐसे बच्चों को #गाय का दूध पिलाना चाहिये | गाय का दूध थोड़ा पानी मिलाकर, उबालकर थोड़ा गरम(कुनकुना) पिलाना चाहिये |
जो माताएँ स्वयं का दूध न पिलाना न चाहती हो वह माताएँ भी प्रसव के एक सप्ताहतक अपना दूध बच्चे को अवश्य पिलावें | जिस समय बच्चा जनमता हैं, उसकी आँतो में काला-काला मल एकत्रित रहता हैं | उस मल को निकालना आवश्यक होता हैं | तुरंत प्रसूता माताका दूध बच्चे को रेचक होता हैं |
उस दूध के पीने से नवजात शिशु का मल साफ हो जाता हैं | जो माताएँ इसपर भी दूध नहीं पिलाती हैं और बच्चे का मल साफ करने के लिये "अरंडी" आदि का तेल पिलाती हैं, ऐसी अवस्था में बच्चे को विरेचन देना कितना नुकसानदेह हैं -- यह उनके लिये विचारणीय हैं |
जो माताएँ अपने बच्चों को पर्याप्त समयतक दूध पिलाती हैं, उनके गुण निम्नवत् हैं --
१- माता का दूध बच्चे के लिये अमृततुल्य हैं | २-- जो माता अपने बच्चे को दूध न पिलाकर अपने सौन्दर्य को स्थिर रखना चाहती हैं, उसे संसार में माता के पद का अधिकारी नहीं समझना चाहिये | ३-- क्रोध करके बच्चे को दूध पिलाने से बच्चे पर जहरीला प्रभाव पड़ता हैं | अतः क्रोध की दशा में बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिये | क्रोध शान्त होनेपर दूध पिलाये | दूध हमेशा प्रसन्नचित्त होकर बालक को और अपने को वस्त्र से ढंककर दूध पिलाये | निर्लज्ज होकर जो दूध पिलाती हैं उनकी सन्तानें निर्लज्ज ही बनती हैं | बालक का स्तनपान पूरी तरह से अपने-आप छूट न जाय तबतक पति-पत्नी  संयम बनाये रखैं - असंयमित वासनामय माता-पिता की सन्ताने भी कामी और असंयमी बनती हैं |
४-- यदि माता का दूध बच्चे के लिये पर्याप्त नहीं हैं तो *#दूध_बढ़ाने_का_उपाय* करना चाहिये |
५-- जिस माता को दूध कम होता हैं, उसे शाली-चावल, साठी-चावल, गेहूँ, लौकी, नारियल, सिंघाड़ा, शतावरी,अश्वगंधा,मूलहठी, विदारीकन्द, आदि पदार्थ प्रसन्न चित्त होकर सेवन करना चाहिये | कलम-चावल, जिसे काश्मीर में महातंदुल कहते हैं, इसका सेवन दूध बढ़ाने के लिये उत्तम होता हैं | कलम-चावल दूध में पीसकर सेवन करना चाहिये | जहाँ कलम-चावल उपलब्ध न हो वहाँ शतावरी या विदारीकंद को दूध में पीसकर पीना चाहिये | इससे दूध बढ़ जाता हैं | माता के आहार में छिलकेवाली दालकी मात्रा बढ़ा देने से भी दूध प्रायः बढ़ जाया करता हैं |
*#चन्द्रशूर* --- यह चंसुर, हालो, हालिम आदि नामों से किरानावालों के यहाँ मिलता हैं | यह हरीतक्यादि वर्ग का लाल-नारंगी रंग का बीज हैं | दूध में चन्द्रशूर की खीर बनाकर सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती हैं | कमरदर्द दूर होकर बल आ जाता हैं, वातपीड़ा दूर होती हैं | नारियेल की गिरी मिस्री के साथ, पपीता और अंगूर के सेवन करें | स्तनों(आँचल)पर  कपास के बीज का लेप करने से स्त्री का दूध बढ़ता हैं |
आधुनिक माताओं से प्रार्थना हैं कि वे अपने दिखावटी सौन्दर्य के लिये अपने हृदय के टुकड़े (मासूम बच्चे) - को अपने अमृतरूपी दूध से वञ्चित न करें | सौन्दर्य तो समय आनेपर नष्ट ही हो जाता हैं, फिर उसपर गर्व कैसा ?
अतः अपने मातृत्व के अधिकार से वञ्चित न रहें और दूध न पिलाने की स्थिति में स्तनों में होनेवाले कैंसर (कर्क)रोग आदि से बचें | दूध पिलाते समय "जगज्जननी माँ सरस्वती स्वयं शिशु को दूध पिला रही हैं ऐसा स्मरण करतें रहैं ||
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री उमरेठ ||

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

यज्ञोपवीत 2

संस्कारविमर्श

यज्ञोपवीतम्