परिवार में जब धर्म के प्रति अरुची
घर परिवार में जब धर्म के प्रति अरुची हो सबको तो, किसी को यह मत कहो कि आपको अमुक पालन करना हैं, सीर्फ आप ही स्वधर्म का पालन करें, जहाँ उचित लगे वहाँ स्वनिर्भर आप स्वयं कामकाज करिये, शुद्ध सात्विक खाना,पीना निषेध का पालन आदि । परंतु आपके परिवार में जो धर्म पलवाना चाहे वह सब भगवान को ही नित्य धर्मगाथा ऊंचे स्वर में सुनाईये फिर दैखना । क्या होता हैं --
एक भ्रमर के नन्हे कीट को स्वयंपुख्त भ्रमर नित्य दंश दे देकर भी अपने जैसा बनाकर छोड़ता हैं, तो फिर आप तो ज्ञानपुख्त-भ्रमर हो।।
किसी हठरोगी का ईलाज भी तो रोगी के न चाहने पर भी उनके स्वस्थ होने की सत्कामना से नित्य कड़वी दवाई देनेवालें वैद्य और स्वजन कड़वी-दवाई पीला पीलाकर सारवार करतें हैं, इसमें वैद्य या स्वजन को दोष नहीं लगता, यदि रोगी भगवत्कृपा से सँभल गये,स्वस्थ हो गयें तो उनके साथ सपरिवार फिर से आनन्द करने लगता है।। यह आनन्द यहाँ स्वधर्म में सब को झूकाव लाने का रहेगा।।
एक भ्रमर के नन्हे कीट को स्वयंपुख्त भ्रमर नित्य दंश दे देकर भी अपने जैसा बनाकर छोड़ता हैं, तो फिर आप तो ज्ञानपुख्त-भ्रमर हो।।
किसी हठरोगी का ईलाज भी तो रोगी के न चाहने पर भी उनके स्वस्थ होने की सत्कामना से नित्य कड़वी दवाई देनेवालें वैद्य और स्वजन कड़वी-दवाई पीला पीलाकर सारवार करतें हैं, इसमें वैद्य या स्वजन को दोष नहीं लगता, यदि रोगी भगवत्कृपा से सँभल गये,स्वस्थ हो गयें तो उनके साथ सपरिवार फिर से आनन्द करने लगता है।। यह आनन्द यहाँ स्वधर्म में सब को झूकाव लाने का रहेगा।।
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